*पूर्व_भाजपा_सरकार_के_समय_मे_खोले_गए_संस्थान_कांग्रेस_सरकार_ने_किए_बंद*MN sifat*
25 दिसंबर 2022- (#पूर्व_भाजपा_सरकार_के_समय_मे_खोले_गए_संस्थान_कांग्रेस_सरकार_ने_किए_बंद)–
मेरा यह स्पष्ट मानना है कि चुनावी वर्ष मे पूर्व भाजपा सरकार द्वारा खोले गए कार्यालय और अन्य संस्थान के पीछे जनहित से अधिक राजनैतिक कारण थे। हिमाचल मे ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। इससे पहले वीरभद्र सरकार भी इसी तर्ज पर चुनावी वर्ष मे वोट पाने के उद्देश्य से सैकड़ो संस्थान खोल देती थी। इसमे कितना बजट का प्रावधान किया जाता था यह समीक्षा का विषय है, लेकिन यह सर्वविदित है कि इस प्रकार चुनावी वर्ष मे संस्थान खोलने की घोषणाएं न तो वोट दिला सकी और न ही किसी सरकार को रिपीट करवा सकी है। मतदाता किस आधार पर वोट डालते है उसके लिए अभी तक कोई एक फार्मूला तय नहीं हो सका है। इस पर कई वर्षों से शोध जारी है, लेकिन कुछ उदाहरण जरूर हमारे सामने है जो यह साबित करते है कि इस प्रकार की घोषणाएं मतदाताओं को आकर्षित करने मे असफल रही है। पहला सटीक उदाहरण जुब्बल कोटखाई का है। स्मरण करें कभी सारा निर्वाचन क्षेत्र ठियोग सब डिविजन (सिविल) के अंतर्गत आता था। वहां उपचुनाव की आहट के बाद जुब्बल और कोटखाई दोनो जगह एस.डी.एम कार्यालय बन गए। इसके बाद भाजपा नेतृत्व वहां उपचुनाव की जीत के लिए आशवस्त हो गया था, लेकिन उपचुनाव का परिणाम था कि भाजपा जमानत नहीं बचा सकी। फिर विधान सभा के आम चुनाव मे भाजपा ने गलती सुधार की और उम्मीदवार बदला लेकिन वह दो एस.डी.एम कार्यालय पराजय को जीत मे बदलने मे सहायक नहीं बन सके।
मेरे विचार मे दूसरा सटीक उदाहरण शिलाई विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का है। यहां भी भाजपा सरकार ने एक नया सब डिविजन (सिविल) खोल कर एक निर्वाचन क्षेत्र मे दो एस डी एम कार्यालय बना दिए। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री जी के प्रयासों से एक बड़े समुदाय को हाटी जनजातीय दर्जा दिलाया गया। सरकार ने पूरी कोशिश कर उसकी अधिसूचना चुनावों से पहले करवाई ताकि शिलाई और रेणुका चुनाव क्षेत्रों मे इसका लाभ मिल सके, लेकिन दोनो क्षेत्रों मे परिणाम भाजपा के विपरीत रहा। खैर चुनावी वर्ष मे जितनी जल्दबाजी मे यह संस्थान खोले गए उससे भी अधिक जल्दबाजी मे कांग्रेस की नई सरकार ने यह डी- नोटीफाई कर दिए है। हालांकि यह संस्थान मंत्रीमंडल की मंजूरी के बाद खोले गए थे। मेरी समझ मे इनको बंद करने का निर्णय भी मंत्रीमंडल द्वारा किया जाना चाहिए था, लेकिन नये मुख्यमंत्री नये मंत्रीमंडल के गठन तक भी संयम नहीं रख सके और भाजपा को सक्रिय होने का अवसर प्रदान कर दिया है। अब भाजपा कार्यकर्ता इसे कांग्रेस का जनहित विरोधी निर्णय बता कर डी- नोटीफिकेशन का विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आए है। भाजपा को इन संस्थानो को खोलने का भले लाभ न मिला हो, लेकिन कांग्रेस सरकार ने जिस प्रकार इनको बंद किया और जैसे भाजपा ने इसका विरोध करने मे सक्रियता दिखाई है उसका लाभ भाजपा को अवश्य मिलेगा। इसकी पहली झलक 2024 के लोकसभा चुनाव मे देखने को मिल सकती है।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।