*बिना अलविदा कहे छोड़ दीजिए , वापिस आने में लगने वाला समय ही रिश्ते की गहराई को व्यक्त करता है।*
बिना अलविदा कहे छोड़ दीजिए , वापिस आने में लगने वाला समय ही रिश्ते की गहराई को व्यक्त करता है।
किसी को भी, ख़ुद को पूरी तरह जानने मत दीजिए। जानते ही वह आपसे कटने लगेगा और अलग हो जाएगा। पूरी तरह जान लेना, रूचि का ख़त्म हो जाना है, यानी आकर्षण का लुप्त हो जाना है, और यह दुनिया आकर्षण पर ही चलती है।
यदि आप किसी को पूरी तरह जान गए हों, तो उसे यह पता लगने मत दीजिये। अगर आपको किसी की आदत हो गयी है तो भी उसे पता मत लगने दीजिए, प्रकृति का नियम है वो दूर चली जायेगी। पता लगते ही वह आपसे कतराने लगेगा और अलग हो जाएगा। कोई इंसान अन्दर से यह नहीं चाहता कि उसे पूरी तरह जान लिया जाए। इंसान सबसे ज़ियादा आईने से ही डरता है।
यहाँ मैं पूर्णतः असहमत हूँ, पूरी तरह जानना क्या होता है क्या कोई ख़ुद को पूरी तरह जान पाता है…जीवन के आखिरी पड़ाव पर भी कितने स्तम्भित करने वाले खुद के dimensions से रूबरू होते हैं लोग… अपनी क्षमताओं तक का तो सटीक आंकलन सम्भव नहीं हो पाता।
यक़ीन मानो जितना भी ख़ुद के बारे में बता दो पर एक वक्त के बाद यही सुनने को मिलता है कि तुम्हें समझना असंभव है।
और यदि मान भी लिया जाए कि हम स्वयं से परिचित हैं तब भी इस बात को एक रिश्ते में आकर्षण बने रहने के ख़ातिर छुपाना कहाँ तक लाज़मी है… ऐसा मनुष्य जो आपको, आपके सहज रूप में स्वीकार नहीं कर सकता, वो आपको कैसे deserve कर सकता है ?…क्या ऐसे रिश्ते समय के संग गले के फंदे नहीं बन जाते जहाँ हर वक्त एक बात बताने से पहले कितने हिस्से की कटाई छटाई की जाए, बताया जाए भी कि नहीं… कितना असहज हो जाता है ऐसे में जीवन सिर्फ एक रिश्ते की चाह में, ख़ुद मुखौटे की आड़ में जीना…ऐसा रिश्ता जिसमें आप हैं ही नहीं…. जिस एकांत के भय से आप खुद को ढकने की कोशिश करते हैं आंखे बंद करने से वो गुम नहीं हो जाता।