*दिल्ली हाईकोर्ट का फैसले को जल्द लागू करने के लिए दिशा निर्देश दे केन्द्र सरकार*
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसले को जल्द लागू करने के लिए दिशा निर्देश दे केन्द्र सरकार
दिल्ली हाईकोर्ट ने जनवरी 2023 को अपना फैसला देते हुए स्पष्ट किया है कि (बीएसएफ आईटीबीपी, एसएसबी ,सीआरपीएफ,सी आई एस एफ इत्यादि सभी पैरामिलिट्री बलों को सेना की तरह *भारत संघ के सहस्त्र बल माना है * जो सच्चाई को सामने लाने का कोर्ट का बहुत ही प्रशंसनीय एवं सराहनीय फैसला है।
अधिनियम 1950 की धारा 3 (xi) भारत के संविधान की 7वी अनुसूची के तहत संघ सूची की प्रविष्टि संख्या 2 सेना के साथ पैरामिलिट्री बलो को भी रखा गया है। लेकिन बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि सेना के एक अधिकारी द्वारा पैरामिलिट्री की भूमिका एवं कामकाज पर लिखे गए उनकी निजी राय पर लिखे लेख पर भरोसा करते हुए गृह मंत्रालय के कार्यालय ने अपने ज्ञापन संख्या 45020/2011-pers/ii दिनांक 18 मार्च 2011 को किसी वैधानिक प्रधिकरण की मंजूरी के बिना सिर्फ लेख के काल्पनिक आधारों पर पैरामिलिट्री का नवीनतम नाम बदल कर *सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फ़ोर्स कर दिया । वास्तविक समस्या यह है कि गृह मंत्रालय बिना किसी कानूनी वैधता के समय-समय पर अपनी सुविधानुसार विभिन्न नामकरणो का उपयोग करता रहा है । संसद के पटल द्वारा विधिवत स्वीकृति नियमों की सहमति के बिना ऐसा करना संसद की अवमानना ही माना जा सकता है । हमारे बीच मैं भी में हमारे ही कुछ अधिकारियों का अभी भी यह मानना है कि चाहे कोई भी नाम दिया जाए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि यह नामकरण की शुरुआत के बाद ही सरकार ने हमें लगभग हर उद्देश्य के लिए सिविल सरकारी कर्मचारियों के साथ बराबरी करना शुरू कर दिया था जिसका परिणाम यह हुआ हम सभी जायज हकों ओर लाभों से वंचित रह गए जिसके हम सही हकदार थे। 07वे केंद्रीय वेतन आयोग द्वारा बनाई राय ओर सिफारिशों में पैरामिलिट्री बलों को * सिविल नागरिक बल शब्द * से जोडा था । अगर गृह मंत्रालय ने वेतन आयोग को पैरामिलिट्री को सशस्त्र बलों के रूप में संदर्भित किया गया होता तो उस समय वेतन आयोग इस तरह की राय नहीं बनाता। जिसका परिणाम यह हुआ हमें सभी जायज हकों के लाभों से बचित रखा गया ओर पैरामिलिट्री को सिविलियन कर्मचारियों की तुलना में कम श्रेणी के रूप में माना जाने कि शुरुआत हुई । सेना ,नोसेना, ओर वायु सेना के कर्मियों ओर उनके आश्रितों के अलावा *सी एस डी कैंटीनों * से असम राइफल्स (पैरामिलिट्री जो गृह मंत्रालय आता है) , सीमा सड़क संगठन , इत्यादि और सेना में सेवा दे रहे सभी सिविल कर्मचारियों को केंटीन सुविधा लागू हे लेकिन पैरामिलिट्री वलो ओर आश्रितों के लिए माननीय गृह मंत्री पैरामिलिट्री केंटीन के मामले में। * जी एस टी* छुट दिलवाने तक के लिए चुप हैं ।जो समझ से वाहर ही है।
आज सभी से ज़रूरी मेडिकल सुविधा तक के लिए भी सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं जिससे पहाड़ी प्रदेशों में रहने वाले सदस्य एवं आश्रित अपनी स्वास्थ्य सुविधा से भी बचित है।
एशियाई देशों में भी पैरामिलिट्री फोर्स को उनकी दी जा रही सेवाओं को देखते हुए लड़ाकू बल ( पैरामिलिट्री बल) कहा जाता है और उन्हें सुविधाओं के नाम पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। बीएसएफ एक्ट 1968 की बी एस एफ धारा 4, सीआईएसफ अधिनियम 1968 की धारा 3, सीआरपीएफ अधिनियम 1949 की सीआरपीएफ धारा 3 , आइटीबीपी अधिनियम 1992 की आइटीबीपी धारा 4, एसएसबी अधिनियम 2007 की एस एस बी धारा 4, तटरक्षक अधिनियम 1978 की धारा 4 सभी बलो का गठन *भारत संघ के सहस्त्र बल*(आर्म्ड फोर्स ऑफ दी यूनियन) के रूप में हुआ है । देश में आज के माहौल को ओर पैरामिलिट्री द्वारा सरहदों ओर आंतरिक सुरक्षा की सेवाओं देखते हुए ज्यादा उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है कि मातृभूमि की रक्षा में *पहली पंक्ति में आने वाले * हमारे पैरामिलिट्री फोर्स देश की आंतरिक सुरक्षा ,सरहदों की रक्षा एवं आपदा प्रबंधन में अपनी जान की भी परवाह न करते हुए उच्च जोखिम उठाकर अपनी अहम महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है। अजादी के बाद देखा जाए तो मातृभूमि की रक्षा सुरक्षा में सवसे ज्यादा कुर्बानियां भी पैरामिलिट्री के सदस्यों ने दी है। ।केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को पैरामिलिट्री सदस्यों को दी जा रही सेवाओं ओर उनके मनोवल को ध्यान में रखते हुए जल्द पैरामिलिट्री सदस्यों के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार सभी सही जरूरी नियमों में सूधार कर पैरामिलिट्री सदस्यों ओर उनके आश्रितों को उनके जायज हक सुविधाओं को दिलवाने में अपनी उच्च कोटि की राजनीतिक कुशलता का परिचय देने में अभी देरी नहीं करनी चाहिए
मनवीर कटोच
मुख्य प्रवक्ता राष्ट्रीय पैरामिलिट्री संगठन
मोबाइल 8679710047
गांव भवारना जिला कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश 176083
manbirkatoch@gmail.com