*सर्वोच्च न्यायलय में समलैंगिकों की शादी की आज्ञा से सबंधित याचिका पांच जजों की पीठ को संवैधानिक पक्ष और विपक्ष के विचार विमर्श के लिए विचारार्थ भेजी गई**
सर्वोच्च न्यायलय में समलैंगिकों की शादी की आज्ञा से सबंधित याचिका पांच जजों की पीठ को संवैधानिक पक्ष और विपक्ष के विचार विमर्श के लिए विचारार्थ दिए गया है । आम जनता इसके विरोध में अधिक लगती है । वास्तव में धर्म या धार्मिक धारणाएं किसी तर्क या तथ्यों को नही मानती । समलैंगिकता को भी विभिन्न धर्मों में एक मानसिक विकृति के रुप में देखा गया है प्राचीन काल से ही । फिर भी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसंधान ने यह तथ्यों सहित स्थापित किया हैं की यह कोई सेक्सुअल विकृति नही है जीटी अपितु जन्मजात समस्त है जिसके लिए जींस भी उत्तरदाई हैं । इसको आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में gender dysphoria कहा जाता है । इसमें भ्रूण विकसित हो इस रूप में होता है की इसे अपोजिट जेंडर में कोई दिलचस्पी नहीं होती न ही सहजता । रोमन और भारतीय प्राचीन सभ्यता में इसके उदाहरण कुछ मूर्ति कला में मिलते हैं। अर्ध नरीशवर की परिकल्पना भी शायद पौराणिक काल मे इससे प्रभावित रही हो । लेकिन एक बात सत्य है वर्तमान युग मे यह कोई मानसिक विकृति नही है समलैंगिक संबंधों को अधिकतर देशों में अब स्वीकृति मिल चुकी है । धार्मिक रुप बेशक नही मिली
इसाई मुस्लिम भी सनातन धर्म की तरह इसका विरोध करते हैं । जब की चोटी छुपे हर धार्मिक वर्ग में यह विद्यमान है । बहुत से अमीर मुस्लिमो में भी लौंडे रखने का रिवाज था उनकी आंखों में अकसर सूरमा और शृंगार कर के ले जाते थे । कुछ पाकिस्तानी लेखकों के उपन्यासों या किताबो में इसका जिक्र मिलता हैं । महान लेखक खुशवंत सिंह भी अपने लेखों में जिक्र करते रहे है । इस लिएं यह हर समाज में प्राचीन काल से विद्यमान थी । यह सब वैसे ही जैसे कोई भी जन्म से कमी लेकर पैदा होता है । अभी इन जन्मजात विसंगतियों के कारणों की पूरी स्टीक जानकारी नहीं हैं वरना इलाज भी संभव हो जाता । दूसरी तरफ धार्मिक या किसी तर्क और तथ्य को न मानने वाले लोग हैं जो वास्तविकता को मानते हुए भी नही मानते न समझते हैं । धार्मिक या सांस्कृतिक रूढ़ियां अपनी जगह बहस के विषय हो सकती हैं लेकिन परिवर्तन अपरिहार्य होते हैं । भारतीय सर्वोच्च न्यायलय पहले ही समलैंगिक लोगो को साथ रहने का और वयस्क लोगो के आंतरिंग सबंधों को मान्यता दे चुका हैं । विवाह भारतीय या हिन्दू सभ्यता में एक धार्मिक संस्कार माना जाता है इस लिएं यह विषय कहीं अधिक जटिल है और सर्वोच्च न्यायलय कैसे तय करता है यह भी दिलचिस्प होगा । फिलहाल सरकार का पक्ष खामोश रह कर चीजे देखना अधिक सही है । सरकार ने न्यायलय में यह तो कहा कि समलैंगिक विवाह संबंधी कानूनों के लिए राज्यों के पक्ष भी देखने होंगे और सर्वोच न्यायलय जल्दबाजी न करे लेकिन न्यायलय ने सरकार की दलील को नही माना । अब यह पूरी तरह फिलहाल न्यायलय पर है । वास्तव में खान पान , रहन सहन , रीति रिवाज और बहुत कुछ आधुनिक काल मे धर्म से अलग रूप में देखा जायेगा निकट भविष्य में । हम अब उस वर्ण संकर सिद्धांत के साथ बहुत लम्बे समय तक नही चल सकते जो भगवत गीता में वर्णित है । उसी तर्ज चिक्तिसा विज्ञान के अनुसंधानों को भी खारिज नही किया जा सकता जो तथ्यों पर आधारित होता है । मामला अदालत में है उसे ही तय करने दीजिए कयोंकि वो ही विज्ञ भी है न्याय करने के लिऐ ।
“उ बाली अंश”,