

ज़िंदगी क्या हैं ?
आज मन किया कि ज़िंदगी के मायने क्या हैं इस के बारे लिखा जाए ।ज़िंदगी का क्या ?छोटे से दायरे में चलना जानती हैं ।जैसे एक पगडंडी पे जो शुरू हुई नहीं की ख़त्म ।दूसरी तरफ़ विशाल विकराल रूप भी जानती जैसे की पगडण्डी से खुली सड़क पे निकल आये और बड़ी सड़क से जा मिले जो नेशनल हाईवे हो ।सच में ज़िंदगी में दिक़्क़त आती हैं तो एसा लगता है पथरीली सड़को पे चल रहे हैं ।थोड़ा सा सकुन आता हैं तो ज़िंदगी स्टेट हाईवे पर ।ज़्यादा आ जाए तो नेशनल हाईवे। ट्रक ट्रैक्टर की दहाड़ से पगडंडी हिल जाते हैं।या फिर चिरकल से नरमी से उतरे एहसास सिल्क की तरह हमे लिपटे लेते हैं।पगडंडी तो चमकृत होती हैं।किन किन रास्तो से गुजरती हुई किधर चली जाती हैं।ईसी तरह किधर से मैचली किधर पहुँच गई ।यही मेरी ज़िंदगी हैं।वाह क्या मस्त।