पाठकों के लेख एवं विचार
*(इक पेड़ कदम का)* विनोद वत्स
एक नई रचना आप सभी के लिये।
(इक पेड़ कदम का)
इक पेड़ कदम का लगा दूँ माँ।
कान्हा को उसपे बिठा दूँ माँ।
बन जाऊं बांसुरी उसकी मैं।
दुनिया को प्रेम सिखा दूँ माँ।
इक पेड़ कदम का लगा दूँ माँ—
अंतरा 1
सब कहते कृष्ण छलावा है।
मैं कहता वो तो माया है।
मेहनत करने को कहता है।
प्रारब्ध के खेल दिखाता है।
उसको अपना बना लू माँ।
उसकी छाया में इतरा लू माँ।
इक कदम का पेड़ लगा दूँ माँ
कान्हा को उसपे बिठा दूँ माँ——
अंतरा 2
राधा के नाम पे खुश होते।
जो जपता उसे खुशी देते।
राधा उनके प्राणों में बसी।
राधा उनके अधरों की हँसी।
राधा सा खुद को सजा दूँ माँ।
और कृष्ण को अपना बना लू माँ
इक कदम का पेड़ लगा दूँ माँ।
कान्हा को उसपे बिठा दूँ माँ।—–
विनोद वत्स