*नालायक कहीं का*:- *लेखक नवल किशोर शर्मा TCT*
*नालायक कहीं का*
बेटा !!!! हमारा एक्सीडेंट हो गया है, मुझे तो ज्यादा चोट नहीं आई लेकिन तेरी माँ की हालत गंभीर है ! कछ पैसों की जरुरत है और तेरी माँ को खून भी देना पड़ेगा !
बासठ साल के माधव जी ने लाचार स्वर में अपने बड़े बेटे से फोन पर कहा !
पापा, मैं बहुत व्यस्त हूं ! आजकल, मेरा आना नहीं हो सकेगा। मुझे विदेश में नौकरी का बढ़िया पैकेज मिला है तो उसी की तैयारी कर रहा हूँ। आपका भी तो यही सपना था ना ?
इसलिए मेरा हाथ भी तंग चल रहा है ! आप अपने स्तर पर पैसे की व्यवस्था कर लीजिए मैं बाद मे दे दूंगा उनके बडे इंजिनियर बेटे ने जवाब दिया!
इतने सपाट किस्म के प्रत्युत्तर से माधव जी थोड़े सकपका गए, फिर खुद को सम्भालते हुए सोचने लगे कि बेटा शायद सचमुच ही रुपये पैसे से तंग होगा इसलिए खीझ गया !
उन्होनें अपने दूसरे डाॅक्टर बेटे को फोन किया तो उसने भी आने से मना कर दिया। उसे अपनी ससुराल की एक शादी में जाना था।
हाँ इतना जरुर कहा कि पैसों की चिंता मत कीजिए, मै भिजवा दूंगा !
वो अलग बात है कि उसने कभी पैसे नहीं भिजवाए ! उन्होंने मायुसी से फोन रख दिया…..!
अब उस नालालक को फोन करके क्या फायदा ? जब ये दो इतने लायक बेटे कुछ नही कर पा रहे हैं तो वो निकम्मा, नालायक आखिर क्या कर लेगा ?
उन्होंने सोचा और बोझिल कदमों से अस्पताल मे पत्नी के पास पहुंचे और कुर्सी पर ढेर हो गये…।
पुरानी बातें याद आने लगी….!
माधव राय जी पेशे से सरकारी स्कूल में एक शिक्षक थे।
उनके तीन बेटे और एक बेटी थी।बडा इंजिनियर और मंझला डाक्टर था। दोनों की शादी बड़े घराने मे हुई थी और अपनी पत्नियों के साथ अलग अलग शहरों मे रहते थे….!
बेटी की भी शादी उसकी पसन्द के लड़के से उन्होंने खूब धूमधाम से की थी !
सबसे छोटा बेटा पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाया था ! ग्यारहवीं के बाद उसने पढाई छोड़ दी और घर मे ही रहने लगा। कहता था मुझे नौकरी नहीं करनी और अपने माता पिता की सेवा करनी है !
इसी बात पर मास्टर साहब उससे बहुत नाराज रहते थे….!
उन्होंने उसका नाम ही नालायक रख दिया था। दोनों बड़े भाई पिता के आज्ञाकारी थे पर वह गलत बात पर उनसे भी बहस कर बैठता था। इसलिये माधव जी उसे बिल्कुल पसंद नही करते थे…..!
जब माधव जी रिटायर हुए तो जमा पूंजी जी कुछ भी नहीं थी। सारी बचत दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा और बेटी की शादी में खर्च हो गई थी।
साहित्य के अध्यापक थे इसलिए किताबी कहावत पर यकीन करते थे कि
सन्तान योग्य तो धन संचय क्यों ? तथा अगर सन्तान अयोग्य तो धन संचय क्यों ?
शहर मे एक घर थोड़ी जमीन और गाँव मे थोडी सी जमीन थी। घर का खर्च उनकी पेंशन से चल रहा था….!
माधव जी को जब लगा कि छोटा बेटा जुबान चलाने से सुधरने वाला नहीं तो उन्होंने बँटवारा कर दिया और उसके हिस्से की जमीन उसे देकर उसे सदा के लिए गाँव मे ही रहने भेज दिया।
हालांकि वह जाना नहीं चाहता था पर बुझे मन से पिता की जिद के आगे झुक गया और गाँव मे ही झोंपड़ी बनाकर रहने लगा।
माधव जी सबसे अपने दोनों होनहार और लायक बेटों की हमेशा बड़ाई किया करते।
उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था। पर भूले से उस नालायक का नाम भी नही लेते थे।
दो दिन पहले दोनों पति पत्नी का एक्सीडेन्ट हो गया था, वह अपनी पत्नी के साथ सरकारी अस्पताल में थे और डाॅक्टर ने तुरन्त उनकी पत्नी को आपरेशन करने को कहा था।
पापा, पापा ! सुन कर तंद्रा टूटी तो देखा सामने वही नालायक खड़ा था। जिम्मेदारियों के बोझ से वह समय से पहले ही कुछ अधेड़ सा दिखने लगा था ! माधव जी के दिल जाने क्या आया कि हिकारत मे उन्होंने गुस्से से मुंह फेर लिया।
पर उसने पापा के पैर छुए और रोते हुए बोला :-
पापा आपने इस नालायक को क्यों नही बताया !?
पर मैंने भी आप लोगों पर जासूस छोड रखे हैं। देखिए खबर मिलते ही भागा चला आया हूं….!!!
पापा के विरोध के वावजुद उसने उनको एक बड़े अस्पताल में भरती कराया। माँ का आपरेशन कराया और अपना खून दिया।
बदहवास दिन रात उनकी सेवा में लगा रहता कि एक दिन अचानक वह गायब हो गया।
वह उसके बारे में फिर बुरा सोचने लगे थे कि तीसरे दिन वह वापस आ गया। महीने भर में ही माँ एकदम भली चंगी हो गई।
वह अस्पताल से छुट्टी लेकर उन लोगों को घर ले आया। खर्चे बाबत माधव जी के पूछने पर बता दिया कि खैराती अस्पताल था पैसे नहीं लगे हैं।
घर मे नौकरानी थी ही। वह उन लोगों को छोड कर वापस गाँव चला गया।
धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया….!
एक दिन पत्नी के कहने पर यूँ ही उनके मन मे आया कि उस नालायक की खबर ली जाए।
दोनों जब गाँव के खेत पर पहुँचे तो झोंपड़ी मे ताला देख कर चौंके। उनके खेत मे काम कर रहे आदमी से पूछा तो उसने कहा:-
यह खेत तो अब मेरे हैं !
क्या..??? पर यह खेत तो….उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ।
हां,उसकी माँ की तबीयत बहुत खराब थी। उसके पास पैसे नहीं थे तो उसने अपने सारे खेत बेच दिये। वह रोजी रोटी की तलाश मे दूसरे शहर चला गया है,बस यह झोंपड़ी उसके पास रह गई है। यह रही उसकी चाबी….उस आदमी ने कहा !
वह झोपडी मे दाखिल हुये तो बरबस उस नालायक की याद आ गई। टूटे मेज पर पड़ा लिफाफा खोल कर देखा तो उसमे रखा अस्पताल का नौ लाख पचास हजार का बिल उनको मुँह चिढाने लगा।
उन्होंने भरी हुई आँखों से अपनी पत्नी से कहा :- जानकी तुम्हारा बेटा “नालायक” तो था ही एक नम्बर का “झूठा” भी निकला !
उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे और वह जोर से चिल्लाये:-
तु कहाँ चला गया नालायक ???
अपने पापा को छोड़ कर, एक बार वापस आ जा फिर मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगा…उनकी पत्नी के आँसू भी बहे जा रहे थे।
और माधव जी को इंतजार था अपने नालायक बेटे को अपने गले से लगाने का।
सचमुच बहुत नालायक था वो….!!!
इसलिए ही कहा जाता है कि सन्तान को उच्च शिक्षा से पहले उच्च संस्कार दें !
यह कहानी मेरी स्वरचित है ! कृपया पढ़ने के बाद अपनी राय अवश्य दें 🙏🏻🙏🏻
राधे राधे