* लेखक उमेश बाली #मशीन या इंसान#*
मशीन या इंसान
अकसर हम सभी जब यूवा होते हैं तो एक रूटीन में बंध जाते हैं सुबह उठना और काम पर जाना शाम को लौट आना । जैसे सबकुछ एक नियत समय पर बंध गया हो। बिलकुल वैसा ही जैसा किसी मशीन को टाइमर से बांध दिया गया हो समय पर स्वयं ही चालू और बंद हो जानें के लिए कभी सोचा है आपने कि किस तरह आपकी मशीन सुबह चालू होती और शाम तक एक ही कम करती है जिसके लिए बनाई गई हो । आप अपना नित्य कम भी मशीन की तरह करते हो । कभी सोचा है की आप की टूथ पेस्ट का स्वाद कैसा है आपका ब्रश दांतो पर कभी आपने महसूस किया है , आपका ध्यान ब्रश पर भी तब जाता है जब कहीं दांत में दर्द हो या मां में कोई मसूढा छिल जाए वरना पता ही नही चलता ख़ुद को । बस जिंदगी के करीब चालीस बेहतरीन साल हम ऐसे ही गुजार देते हैं जब थोड़ी होश आती है तो बाल सफेद हो जाते हैं , बीपी बढ़ गया होता है या शुगुर हो गई होती है । वास्तव में सारी दूनिया में तीज त्योहार , छुट्टियां , कुछ खास दिन मनाने के रिवाज इस लिए बनाए गए है कि आपक मशीन को एक ब्रेक लगे और आप अपने और अपनो के बारे में सोचे और कुछ एसा करे जिसमे आनन्द मिले । इसी तरह मदर डे फादर डे या अन्य डे है । अक्सर कट्टर लोग हर बात को पश्चिम से जोड़ते हैं और आलोचना करते है । रोज आप मशीन की तरह काम करते है काम से लौट कर घर की शिकायतो और बच्चो की जरूरतों को भी इक रूटीन की तरह करते हैं। आप घर आती बार यह तो सोचते हैं कि जो चीज़ बच्चो को पसंद हैं ले चले लेकिन बूढे माता पिता की पसंद कभी नही पूछते , किसी दिन उनका मन भी हो सकता है किसी मन पसंद चीज़ को खाने का वो कह नही पाते इस लिए इस रूटीन से निकलने की लिए यह दिन हैं कि आप जो करे उस दिन उनकी पसंद का करे । यह सब कुछ नया करने और सोचने जैसा है सिर्फ आपकी मशीन को आराम और ताजा करने के लिए यह आप पर है कि अब आगे क्या सोचते हैं और क्या दृष्टिकोण अपनाते हैं ।
धन्यवाद । उबाली