

समान नागरिक कानून और भारत
अगर बात समान नागरिक संहिता की हो रही है तो इस पर धर्म पर बात होनी ही नही चाहीए । अगर संविधान हर नागरिक को समान आधिकार देता है और तो समान कर्तव्य भावना भी है । दूसरा आज का भारत धर्म निरपेक्ष हैं और धर्म निरपेक्षता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि संविधान के तहत दिए गए अधिकारों से आप आधी आबादी को महरूम नही कर सकते यानि महिलाओ के आधिकार । बावा साहेब ने महिलाओं की दयनीय स्थिति को बहुत क़रीब से महसूस किया था इसी लिएं इसका मशवरा दिया था । यह बावा साहेब की दूर अंदेशी और कबलियत का नतीजा था कि हिंदू , सिख , बोध , जैन आदि सभी सहमत हो गए की एक महिलाओ को बराबर के आधिकार मिलने चाहिए और इसलिए यह कानून हिंदुओ पर लागू किया जा सका हालांकि कुछ हिंदू संगठन विरोध में भी थे लेकिन बहुमत हिन्दू पक्ष में था । जब कि मुस्लिमो की तरफ से प्रबल विरोध हुआ कि हम पर ऐसा कानून न लागू किया जाए यह हमारे धर्म में हस्तक्षेप होगा , यद्यपि अंबेडकर साहिब इस बात से सहमत नही थे, और वो हरगिज यूसीसी चहते थे लेकिन नेहरू जी नर्म पड़ गए नतीजा हिन्दू महिलाओ को वो आधिकार मिल गए लेकिन मुस्लिम अलग हो गए , फिर यह कहा गया कि आगे चल कर राज्य सहमति बना कर UCC लागू करेगा । लेकिन कांग्रेस ने कभी यह कोशिश ही नही की अपितु सर्वोच्च न्यायलय के निर्णयों को पलटने के लिए संशोधन तक कर दिए गए संविधान में । जब की जनसंघ और अब बीजेपी पूरी तरह यूसीसी के पक्ष में है । सबसे दमदार बात यह कि बावा साहिब संविधान में एक आर्टिकल में सपष्ट लिख गए कि यूसीसी ह की तरफ बढ़ना ही होगा । वर्तमान में भी कांग्रेस का वही स्टैंड है जो संविधान निर्माण के समय था । कम से कम इस मुद्दे पर भारत की सभी राजनितिक पार्टियों को भारत के धर्म निरपेक्ष संविधान के पक्ष में एक मत हो कर यूसीसी का समर्थन करना चाहीए , धर्म एक निजी आस्था का विषय है और सरकारों को भी चाहीए इस और बढ़े , लेकिन वोट की राजनीति हर तरफ हावी है । देखते है देश किस दिशा में बढ़ता है । धन्यवाद । उबाली ।