*#आज़ादी_के_संघर्ष_में :हेमांशु_मिश्रा*
#आज़ादी_के_संघर्ष_में
#हेमांशु_मिश्रा
आज़ादी के संघर्ष में
जंग लड़ी थी चौतरफा
सत्य अहिंसा के साथ साथ
खून गिरा था चौतरफा
कतरा कतरा देकर
आज़ादी को पाया था
ज्ञात अज्ञात स्वतंत्रवीरों ने
प्राण दिए थे इस धरा को
मुगल आक्रमण झेला
अंग्रेज़ो से भी टकराये थे
सन सतावन से सैंतालीस तक
जंग लड़ी थी चौतरफा
महाराष्ट्रा बुंदेलखंड झांसी तक
दिल्ली बंगाल और पंजाब तक
अनेकों झूले थे फांसी में
काले पानी मे भी वीरों ने
कोल्हू तक चलाया था
दे दिए थे बलिदान मतवालों ने
धर्म संस्कृति राष्ट्र की
आज़ादी को
मातृ धर्म निभाया था
सच मे वीरों ने मिलकर
जंग लड़ी थी चौतरफा
कांगड़ा के दुर्ग ने भी
अनेकों हमले देखे थे
बार बार परास्त कर
भगाए कई लुटेरे थे
18 सौ 57 में अंग्रेज़ो ने
यहाँ भी बर्बरता बरसाई थी
कुल्लू के राजा
ठाकुर प्रताप चंद को
और
पालमपुर रजेहड़ से सेनापति
वीर चंद कटोच को
सूली पर चढ़ाया था
इन वीरों ने जाबांजों संग
मातृभूमि का कर्ज निभाया था
वीर थे वो, सिंह थे,
थे प्रतापी दीवाने वो,
सबने संघर्षों में देखो
जंग लड़ी थी चौतरफा
पहाड़ी प्रदेश में भी आज़ादी की
तब छाई खुमारी थी
उनके कदमो पर चलते ही
बाबा कांशी राम ने भी
काले कपड़े अपनाए थे
अपनी कविताओं से सबको
आज़ादी के अर्थ सुझाए थे
इन्हीं अर्थों को सहेज कर
जंग लड़ी थी चौतरफा