*(चूल्हे की रोटी) विनोद वत्स*
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(चूल्हे की रोटी)
चूल्हे की रोटी भाये हैं दिल को
फूली हुई ललचाये है दिल को।
संग में आलू टमाटर की सब्ज़ी।
चोखा मज़ा दिलवाये है दिल को।
लकड़ी और कंडे पे बनती ये रोटी।
बाकी रोटियों से होती ये मोटी।
इसका कुरकुरा पन होवे अलग है।
इसे कहे सब चूल्हे की रोटी।
चटनी और प्याज से धुंआ उठाती।
गरीब की थाली की शान बढ़ाती।
साथ मे गर मिल जाती छाछ।
भोजन को अमृत है ये बनाती।
कोई अमीर जब इसको खाता।
इसको खा के बड़ा इतराता।
संग में लेता इसके इक सेल्फी।
एफ बी पे अपनी सबको दिखाता।
बड़े होटल में बिकती है महँगी।
वहा की सिकाई में हो जाती बहँगी।
ठेडे मेढे मुहँ को बना कर।
इंस्टाग्राम पे फोटो, डाली जाती हेंगी।
चूल्हे की रोटी कड़ी संग खाओ।
उसमें शुद्ध घी दो चम्मच मिलाओ।
फिर देखो कैसा स्वाद है आता।
माँ के स्वाद की याद दिलाता।
मुम्बई में भी एक ऐसी जगह हैं
व्यंजन के पीछे उसका पता है।
एक सौ बीस में देती है थाली।
इक बार खाये वो भूले घरवाली।
दो सब्ज़ी दाल चावल रोटी।
पापड़ प्याज़ अचार की बोटी।
ये सब इक थाली में है आते।
इक बार आये जो स्वाद है चाहते।
नाम है उसका रामजी का ढाबा।
स्वाद में मशहूर है वो ढाबा।
भाभी जी इस ढाबे को संभालती
स्वाद के मारो का वो हैं काबा।
विनोद शर्मा वत्स