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*स्वयं को ढूँढने की ख़ातिर ज़िन्दगी के पन्ने टटोलने लगी हूँ: लेखिका रेणु रेणु*

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*स्वयं को ढूँढने की ख़ातिर ज़िन्दगी के पन्ने टटोलने लगी हूँ: लेखिका रेणु रेणु*

 

स्वयं को ढूँढने की ख़ातिर ज़िन्दगी के पन्ने टटोलने लगी हूँ कुछ धुंधले, मिटे हुए अक्सों में छवि फ़िर अपनी खोजने लगी हूँ।कहाँ ढूँढूँ खुद को कैसे मिले पाऊँगी अब गुज़रे पलों की फेहरिस्त लफ़्ज़ों में उकेरने लगी हूँ।वक्त तो बहता दरिया है कब, और कहाँ बहा ले जाए भटकी यादों के गहरे निशां जमीं पर छोड़ने लगी हूँ । जिन्दगी एक कोरी किताब है चाहे जितने पृष्ठ लिख दो उसमें, गुजरे हुए लम्हों के हिसाब लिख दो उसमें ।जो पृष्ठ लिख जाता है उसकी अमिट छाप होती, न कोई रबर मिटा सके उसे उसमें न कलम दवात होती । जिन्दगी तो जीना ही पड़ेगा कितनी ही बाधाएँ आयें उसमें, इन्हें पार करते हुए नया इतिहास लिखना है उसमें । पढ़ते रहना पृष्ठ दर पृष्ठ जो लिखे है अल्फाज उसमें, जिन्दगी तो मिट जायेगी कभी अमिट रहेंगी यादें उसमें ।

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