

#बादलों_को_तो_अब_फटना_ही_है
#हेमांशु_मिश्रा
बादलों को तो अब फटना ही है
मिट्टी के आंगन अब
पेवर से लाल पीले सफेद रंग गए हैं
अंधाधुंध निर्माण ईंट गारे में ढल गए हैं
समझना होगा अब हमें
कुदरत से छेड़छाड़ की गहराई को
कोई तो पैमाना होगा इस नुकसान की भरपाई को
पूछ रहे हो तुम सेहन की सबसे पैमाइश
जहां सोते थे कभी डाल कर चारपाईं
पर क्यों भूल गए तुम
वो आखरी दिन
जब की थी गोबर से लिपाई
गाड़ी को आंगन में रखने की चाहत में
सीमेंट जगह जगह थी तुमने चिपकाई
अब तो समझो प्रकृति की रुसवाई को
कोई तो पैमाना होगा इस नुकसान की भरपाई को
ठंडा आंगन बदल गया है
गर्म ग्राउंड में तप गया है
पहाड़ कब तक झेल पाएंगे
मौसम के इस बदलाव को
गर्म घाटी ठंडी चोटी
तापमन के फासले कच्चे हो गये हैं
बादल फटने आम हो गये हैं
समझ रहे हो ना बेशर्मी की बेहैयाई को
कोई तो पैमाना होगा इस नुकसान की भरपाई को
बादल अब न फटना
पहले से बरसना रिमझिम रिमझिम
क्योंकि तुम से ही जीवन है
तुम से ही ये घाटी ये पहाड़ हैं
तुम से ही तो हम हैं
हम भी ढूंढ लेंगे एक सुई
इन जख्मों की तुरपाई को
कोई तो पैमाना होगा इस नुकसान की भरपाई को