*अतिथि तुम कब जाओगे”😊😊 तृप्ता भाटिया ने पूछा😀*
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“अतिथि तुम कब जाओगे”😊😊
जिस दिन तुम आये शिमला में पानी कम था, कुछ दिन रुकोगे बस इस बात का गम था! टमाटर और सब्जीओं के दाम औकात से बाहर हैं, गाड़ी में पेट्रोल की कमी है।
नलके से पानी नहीं मेरी आँखों से आंसू आये, जब देखा था कि तुम साथ मेरे लिए कुछ नहीं लाये थे। खैर!
जिस दिन तुम आए थे, कहीं अंदर ही अंदर मेरा बटुआ काँप उठा था। फिर भी मुस्कुराते हुए उठे और तुम्हे गले मिले। सबने तुम्हें सादर नमस्ते की। तुम्हारी शान में ओ मेहमान, हमने दोपहर के भोजन को लंच में बदला और रात के खाने को डिनर में। हमने तुम्हारे लिए सलाद कटवाया, रायता बनवाया और मिठाइयाँ मँगवाईं। इस उम्मीद में कि दूसरे दिन शानदार मेहमाननवाजी की छाप लिए तुम किसी बस में बैठ जाओगे जिसका टिकट पर मैं पैसे खर्चने को तैयार हूं मगर, आज चौथा दिन है और तुम यहीं हो। कल रात हमने खिचड़ी बनाई, फिर भी तुम यहीं हो। आज हम उपवास करेंगे और तुम यहीं हो। तुम्हारी उपस्थिति यूँ रबर की तरह खिंचेगी, हमने कभी सोचा न था। अब तो मन कर रहा कुछ दिन में अतिथि बनकर तुम्हारे घर चलूँ और तुम भी कहो अतिथि तुम कब जाओगे।
महंगाई शिमला की, पानी की कमी और कम आय और अतिथि जब आये
व्यंग्य तक✍️