‘नशा’ :- संसार और समाज के लिए अभिशाप:- लेखक उमेश बाली*
‘नशा’ :- संसार और समाज के लिए अभिशाप:- लेखकउमेश बाली*
नशा
नशे पर बहुत कुछ पहले भी लिखा जा चुका है । इसका इतिहास भी उतना ही पुराना है जितनी मानव सभ्यता । शायद किसी युग में सोमरस भी कहा जाता रहा , कहीं दाख मधु भी नाम दिया गया दुनिया में । समय बीतते हुए वर्तमान में हम सिगरेट या तम्बाकू से लेकर मदिरा से लेकर भांग , चरस , अफीम से होते हुए हीरोइन या चिट्टे की तरफ बढ़े । शुगुल में शुरू हुआ कब आदत बन गया कुछ पता ही नही चलता । एक तंबाकू या सिगरेट की लत ही छूटने में नही आती तो बाकी नशों की बात क्या करे । मदिरा या शराब , भांग या फिर अफीम , वास्तव में यह अपने भीतर शांतिदायक औषधीय गुण और एक सीमा तक दर्द निवारक भी है । शांतिदायक दवाएं चिकित्सा जगत में tranquiliser कही जाती है । इनकी अवश्यकता अत्यधिक तनाव या अवसाद की स्थिति में पड़ती है ।बहुत कुछ भुलाने की क्षमता रखती है और बहुत कम मात्रा में लेने से उत्तेजक और चौकस भी करती हैं । अनिद्रा की स्थिति में भी लाभ दायक औषधि के रुप में और दर्द निवारक के रुप में कार्य करती है । भांग से टीबी जैसी बीमारी में लड़ने लायक दवाएं भी बनती है इसी तरह अफीम भी बहुत सी दवाईयों में प्रयुक्त होती है । लेकिन दूसरा दुखदायक पहलू यह है कि इंसान ने नशे के रुप में भी इस्तेमाल करना सीखा । एक बहुत बडा वर्ग सीमित मात्रा में शराब का उपयोग कुछ मनोरंजन के लिए कुछ अनिद्रा के लिए कुछ थकावट और तनाव रहित होने के लिए करता है । यहां तक तो फिर भी ठीक लेकिन जब मदिरा का तलब सुबह उठते ही लगनी शुरू हो जाए तो समझ लीजिए की लत लग गई ऐसे लतखोर व्यक्ती को अल्कोहलिक कहा जाता है और उसका इलाज फिर rehabilitation centre में ही है वो भी तब अगर छोड़ने की इच्छा हो तो । कुछ ऐसी ही स्थिति अन्य नशों की भी है । वास्त्व में यह नशीली चीजे दिमाग को मजबूर नी करती हैं कुछ एंजाइम पैदा करने को और शरीर में जब वो एंजाइम पैदा होने लगते हैं तो इनकी जरुरत या तलब लगती है ।, अकसर कुछ trukdriver जो रात को चलते है उत्तेजना बनी रहने के लिए अफीम का भी सेवन करते हैं । अब आता हूं बच्चों पर या युवा लोगो पर ।
बच्चो के मन में जब निराशाएं जन्म लेती है और वो अपने माता पिता से अपनी समस्याओं का जिक्र नहीं कर पाते या माता पिता के पास समय नहीं होता तो नशे के व्यापारी सामने आते हैं । उन्होंने अपने सेल स्कुलों और कालेज में तैयार कर रखे होते हैं , वो मित्रवत व्यवहार शुरू करके अपना काम शुरू करते है और उनके दिमाग पर कब्जा कर नशे की और प्रेरित करते हैं । माता पिता को चाहिए कि वो बच्चो से मित्रवत व्यवहार रखते हुए उन्हें अपनी निगरानी में रखें जिसका बच्चों को भान ही न हो की उनकी निगरानी हो रही है। बच्चो की गैरहाजरी में उनके बैग उनकी किताबो कापियों की तलाशी ले । उनके कमरों बिस्तरों की तलाशी ले अगर कोई चीज़ पाई जाती है तो क्रोध की बजाय प्रेमपूर्वक उनसे ओर ज्यादा नजदीक जाने का प्रयास करें और चिकित्सा परामर्श ले । सकूल और कालेजों के इर्दगिद दुकानों पर प्रशासन भी निगरानी रखें और सामाजिक कार्यकर्ता भी । तब बचाव हो सकता है स्कूलो में कार्यशाला आयोजित हो चिक्सिक साथ में हो जो शरीर पर होने वाले दुष्प्रभावों की जानकारी वीडियो से बच्चो को दे ताकि बच्चों में अपने शरीर के प्रति जानकारी बढ़े । प्रशासन और पुलीस का जनता भी सहयोग करे और प्रशासन भी चौकस रहे । तब जा कर युवाओं को बचाया जा सकेगा । निराशा न पनपने दे । हर बच्चे की योग्यता अलग अलग होती है उसकी योग्यता को पहचान कर उसमे निखार लाने का प्रयत्न करे । हमे सत्य का सामना करना होगा ।
उबाली