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*न बहे आँसुओं ने दिल की दुनिया में सबसे ज़्यादा तबाहियां मचाई हैं*Tripta Bhatia*

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*न बहे आँसुओं ने दिल की दुनिया में सबसे ज़्यादा तबाहियां मचाई हैं* tripta bhatia

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ज़िन्दगी में बहुत बार आप महसूस करते हैं कि वह रिश्ता जो एक समय आपके बगल मजबूती से खड़ा था वह अब जा चुका है..आप उस जाने को जानते हैं पर उधर देखने से डरते हैं ताकि आप उस खाली जगह को न देख सकें…अब आप उस खाली जगह को तमाम चीज़ों से भरने के बारे में सोचते हैं..चीज़ें इकट्ठी भी करते हैं,नए रिश्ते भी बनाते हैं पर आपके ज़ेहन पर वह खाली जगह काबिज़ रहती है..आप जानते हैं कि वह जगह कभी नहीं भरेगी,किसी से नहीं भरेगी पर आप ख़ुद को..दुनिया को भुलावे में रखना चाहते हैं और कहते हैं कि-‘मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता’…

जब जिस वक़्त कोई आपसे कहे कि मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता उस वक़्त आपको मालूम होना चाहिए कि वह बन्दा कितना टूटा फूटा है भीतर से..वह उस बच्चे की तरह है जो मार खाने पर दर्द होते हुए भी नहीं रोता ताक़ि वह अपना ग़ुस्सा, अपना प्रतिरोध चुप रहकर दिखा सके..बाज़दफ़ा न रोना रोने से भी ज़्यादा कारुणिक होता है…यूँ भी हर रोने वाला कमज़ोर और न रोने वाला बहादुर नहीं होता…कभी कभी जब कोई आँसू पोछने, गले लगाने वाला कोई न हो तो भी आँसू सूख जाते हैं..

न बहे आँसुओं ने दिल की दुनिया में सबसे ज़्यादा तबाहियां मचाई हैं…अगर विज्ञान बहे आँसुओं से ज़्यादा गुम हुए,सूखे आँसुओं का हिसाब रखने की कोई मशीन ईजाद करे तो दुनिया के नक़्शे पर एक नया महासागर बन जायेगा और जिसमें डेड सी से भी ज़्यादा खारापन होगा..क्योंकि वह मरे हुए ख़्वाबों, ख़्वाहिशों की कब्रगाह होगा..यूँ तो ज़िंदा वह भी नहीं रहते जिनके आँसू बहना भूल चुके हों…

जो आँसू आँखों से बहने का रस्ता भूल जाते हैं वह कहाँ जाते हैं? क्या वह ख़ून में घुल जाते हैं? याकि हड्डियों को तेज़ाब की तरह गलाते हैं? या भीतर-भीतर वह खोखला होता जाता है..क्या आपने कभी चमकते फल के भीतर की सड़न को देखा है?

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