

समाज में संवेदनहीनता की स्थिति ?
आजकल समाज की संवेदनहीनता की दशा गंभीरता को दर्शा रही हैं।आये दिन हत्याओं की खबरें ,हिंसा की वारदाते समाज की संवेदनहीन प्रकृति को परिलक्षित करती हैं।नगरोटा बगुवा के ज़सोर गांव में भाई भाभी की हत्या ने सोचने को मजबूर कर दिया रिश्तों मे संवेदना या यू कहे मानवता मर रही हैं।इस के करणों का विश्लेषण करने की आवश्यकता हैं।क्या कारण हैं कि हमारी युवा पीढ़ी इतनी आक्रामक और संवदेनहीन हो रही है?जासोर हत्याकांड में तो बेरोज़गारी की भूमिका भी ना थी ?क्यु भाई पर विश्वास ना रहा क्यूँ मासूम बच्चों को ना देखा ।पूरा परिवार तबाह कर दिया।एसी वारदाते यू पी ,बिहार में सुनते थे। हिमाचल प्रदेश जैसे शांत राज्य में इस तरह की घटनाएँ बहुत पीड़ादायक हैं।मेरे विचार मे व्यक्तियों की सामूहिक भागीदारी सामाजिक सरोकारों को जीवंत रखने के लिए ज़रूरी हैं।पारस्परिक संवेदना ही समाज मेंसामाजिक सोहार्द क़ायम रखती हैं।एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल होना आवश्यक हैं।आज का इंसान स्वार्थी हो चुका हैं ।वह केवल अपना स्वार्थ चाहता हैं ।उसे दूसरो की चिंता नहीं हैं ।जनता संवेदनशील ना होकर संवेदनहीन होती जा रही हैं जोएक दुःखद और चिंता की बात हैं।

लेखिका निवेदिता परमार