*प्राइवेट कंपनियों के अत्याचार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक आम भारतीय नागरिक खुला पत्र*
सेवा मे
माननीय प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी जी
भारत सरकार
विषय : प्राईवेट नौकरी में हो रहे अत्याचार की सूचना हेतु प्रार्थना पत्र !!
महोदय
सविनय निवेदन इस प्रकार है । कि कोई भी प्राईवेट कंपनी, प्राइवेट स्कूल या कोई शॉप में जॉब पर हमें 6,000 से 8,000 हर महीने देते हैं और हमसे 10 से 12 घण्टे काम लेते है और वही सरकारी नौकरी के एक चपरासी को हर महीने 45,000 तक मिलते है और उसमे भी 8 घंटे ड्यूटी ।
माननीय प्रधान मंत्री जी हम ये नही कहते हमे भी 8 घंटे की ड्यूटी दो । हमे 12 घंटे की ड्यूटी दो ।
माननीय प्रधान मंत्री जी आपसे अनुरोध है कि
हमे इतनी इनकम दो जिसमे हमारे 2 बच्चे स्कूल मे पढ़ सके । हम भी 2 टाइम अच्छे से खाना खा सके ।
परिवार में अगर कोई बीमार हो तो उसकी भी दवाई आ सके
और हम भी 10 साल जॉब करने के बाद एक
100 गज का मकान ले सकें ।
जो की एक सरकारी जॉब वाला चपरासी 5 साल मे ले लेता है ।
अब महोदय आप ही बतायें कि 8,000 में ये सब कैसे हो सकता है,
माननीय प्रधान मंत्री जी आपसे अनुरोध है कि
जो प्राइवेट संस्थाओं के वर्कर हैं उन पर भी ध्यान दे
उनको 6,000 नहीं 20,000से 24,000 तक मिले जो की एक परिवार का गुजारा हो पाए ।
आपकी अति कृपा होगी ।
धन्यवाद
आपका
गरीब नागरिक
कृपया इस पोस्ट को इतना शेयर करो प्रधानमंत्री जी तक पहुंच जाये!!
यह message कल तक TV पर आना चाहिए। जय हिंद जय भारत।
किसी व्यक्ति ने अपनी व्यथा बड़े मार्मिक ढंग से लिखी है इतना ही नहीं प्राइवेट कंपनी वाले 12 घंटे काम लेते हैं और सरकार के मुकाबले छुट्टियां बहुत कम देते हैं ना उन्हें कोई सिक्योरिटी है ना ही कोई पेंशन.
आप काम ज्यादा लीजिए लेकिन उन्हें सिक्योरिटी पेंशन तथा सरकार की तरह अन्य सुविधाएं भी दीजिए।क्यों सरकार इन कंपनियों पर अपनी नकेल नहीं कसती कि वह अंग्रेजों की तरह भारतीय नौजवानों का शोषण न करें। वह काम जरुर करवायें लेकिन उसके बदले में उन्हें सुविधाएं और आर्थिक लाभ अवश्य दें.
होना तो यह चाहिए था कि अधिक काम करने पर अधिक आर्थिक लाभ और सुविधाएं मिलनी चाहिए परंतु यहां पर उल्टा हो रहा है कि अधिक काम करने पर,कम सुविधाएं और शोषण का सामना. ऊपर से नौकरी की कोई गारंटी नहीं.किसी ने अपने हक की बात कही तो उसे नौकरी से बाहर किया जाता है.
यह कैसा लोकतंत्र जहां पर नागरिकों के कोई अधिकार नहीं. केवल शोषण किया जा रहा है और वह भी सरेआम
क्या सरकार को इस विषय पर नहीं सोचना चाहिए कर्मचारियों का शोषण करके यह लोग खूब अय्याशी करते हैं अपने प्राइवेट जहाज में घूमते हैं और अरबों खरबों रुपए अपनी मौज मौज-मस्ती में उड़ाते हैं.प्राइवेट जेट रखते हैं और जिनके सर पर यह ऐश करते हैं उन्हें स्कूटर रखने लायक भी नहीं छोड़ते. जो देश की अर्थ की प्रकृति में अपना की जान लगा रहे हैं 10 से 12 घंटे तक काम कर रहे हैं उनके पास बच्चों की फीस देने तक के लिए पैसे नहीं हां इतना जरूर है कि कुछ लोग प्राइवेट कंपनी में काफी अच्छी सैलरी लेते हैं लेकिन अधिकतर शुरुआत में लोगों का शोषण ही किया जाता है नौजवानों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
क्या सेंसिटिव सरकार इस विषय पर कोई संज्ञान लेगी शायद कभी नहीं?