ताजा खबरेंधार्मिक

सड़क की बजाय गुरुद्वारे में नमाज. करें  सिखों ने मुसलमानों से कहा।

करने की जरूरत है कि हालत के बा के लिए अवैध गतिविधियों से जुड़ने के लिए मजबूर न हो।

विजय

सड़क की बजाय गुरुद्वारे में नमाज. करें

सिखों ने मुसलमानों से कहा। गुड़गांव है कि वे हर शुक्रवार को गुरुद्वारों में आकर नमाज पढ़ा करें। उन्हें सड़कों पर यदि कुछ लोग नमाज नहीं पढ़ने देते और उनके पास मस्जिदों का पूरा इंतजाम नहीं है तो वे चिता न करें। गुड़गांव के 5 गुरुद्वारे अब नमाज के लिए भी खोल दिए जाएंगे।

गुड़गांव और अन्य कई शहरों में इस बात को लेकर काफी विवाद उठ खड़ा हुआ है कि सड़कों पर नमाज पढ़ने दी जाए या नहीं? कुछ उग्र लोग उसका विरोध सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि वह मुसलमानों को नमाज है। उचित तो यह है कि सड़कों को रोकने वाली चाहे नमाज हो, चाहे रथ यात्रा, किसान प्रदर्शन, पार्टियों के जुलूस हों या नेताओं की सभाएं, उन्हें नियंत्रित किया जाना चाहिए क्योंकि सड़कों के रुक जाने से हजारों-लाखों लोगों के लिए तरह-तरह की मुसीबतें पैदा हो जाती हैं।

गुड़गांव के हिंदुओं और मुसलमानों की तारीफ करनी पड़ेगी कि उन्होंने इस मुद्दे पर न तो कोई गाली-गुफ्ता किया और न ही कोई मारपीट। हरियाणा की सरकार का रवैया भी काफी विवेकपूर्ण रहा। असलियत तो यह है कि यदि आप सुलझे हुए आदमी हैं और यदि आप सच्चे आस्तिक हैं तो आपको भगवान का नाम किसी भी भाषा में लेने में कोई आपत्ति क्यों करनी चाहिए? जो भगवान किसी हिंदू का पिता है, वही जिहोवा ईसाई और यहूदी के लिए है, वही अल्लाह शिया और सुन्नी मुसलमानों के लिए भी है। हम यह न भूलें कि 1588 में अमृतसर में श्री हरिमंदिर साहिब की नींव सूफी संत हजरत मियां मीर ने रखी थी।

मुझे याद है कि 1983 में जब मैं पेशावर में अफगाल नेता (गद में जो राष्ट्रपति बने)

बुरहानुद्दीन रब्बानी से मिला तो उन्होंने कहा कि यह वक्त हमारी नवाजे-तरावी का है। वह करके मैं लौटता हूं। फिर आप मेरे साथ शाकाहारी खाना खाकर जाइएगा। मैंने कहा कि मैं भी आपके साथ चलता हूं। आप की आयतें पढ़ना और मैं वेद-पाठ कुरान करूंगा। दोनों में ही ईश्वर की स्तुति के अलावा क्या किया जाता है?

बिल्कुल ऐसा ही वाक्या 52 साल पहले और अटल जी से भी वरिष्ठ नेता जगन्नाथ रावजी जोशी मुझे अचानक लंदन के हाइड पार्क में मिल गए। उन्होंने कहा कि एक चर्च में आज शाम को आपका भाषण करवाते हैं। वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगती है। मैं चकरा गया। चर्च में संघ की शाखा ? और फिर वहां मेरा. मैंने एक खबर यह भी पढ़ी थी कि मथुरा या वृंदावन के किसी मंदिर के प्रांगण में किसी मुसलमान युवक ने नमाज पढ़ी तो मंदिर के पुरोहित ने तो स्वीकृति दे दी लेकिन कुछ हिंदू उत्साहियों ने उस युवक के खिलाफ पुलिस में रपट लिखवा दी।

कुछ साल पहले लंदन के मेरे एक यहूदी मित्र राबर्ट ब्लम अपने साइनेगॉग (पूजागृह) में मुझे ले गए। उन्होंने वहां ओल्ड टेस्टामैंट का पाठ किया और मैंने वेद-मंत्रों का। वहां बड़े-बड़े यहूदीजन उपस्थित थे लेकिन किसी ने भी मेरा विरोध नहीं किया। यदि आप सचमुच ईश्वरभक्त हैं तो आपको किसी भी मजहब की ईश्वर भक्ति, चाहे वह किसी भी भाषा में होती हो, उसका विरोध क्यों करना चाहिए? जो ईश्वर में विश्वास नहीं करते, जैसे जैन और बौद्ध लोग, उनकी प्रार्थना में भी सभी मानवों और जीव-मात्र के कल्याण की प्रार्थना की जाती है। dr.vaidik@gmail.com

लेखक डा. वेदप्रताप वैदिक 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button