जिन जनप्रतिनिधियों के पास अपने मतदाताओं के फोन सुनने तक का टाइम नहीं क्या उन्हें जनप्रतिनिधि /MLA बनने का नैतिक अधिकार है

Renu sharma

इसे बोलते हैं जनता के असली प्रतिनिधि!!!👌👌👍👍👍 जनता अपने जनप्रतिनिधि (MLA )चुनती है अपनी समस्याओं के समाधान हेतु … जनता ने उन्हें चुना हैअपनी समस्याओं के समाधान के लिए तो यह जनता का अधिकार है कि वह अपने MLA से जब चाहे जहां चाहे मिल सके, और यह MLA का कर्तव्य है कि वह अपनी जनता को यह बताएं कि वह कहां है कब मिलेगा? वह जनता फोन उठाएं उसकी समस्याओं का हल करें ? यह नहीं होना चाहिए कि कोई 25 किलोमीटर दूर चल कर उसके (mla )दफ्तर पहुंचे और वहां पर मिले ही ना…. या जनता फोन करें और वह फोन उठाएं ही ना ….
रवि धीमान ने पिछले कुछ महीनों से यह परंपरा शुरू की है कि वह अपने हक टूर प्रोग्राम को सार्वजनिक करते हैं ताकि जनता उनसे उसी हिसाब से संपर्क कर सकें।
वैसे हमारे लोकतंत्र की विडंबना यह है कि हमारा लोकतंत्र प्रशासन प्रधान नहीं है,यह शासन प्रधान है, वरना आम जनता को MLA, MP मंत्री से कोई काम ना रहे ,यदि प्रशासन उनकी सही व जायज समस्याओं को अपने स्तर पर नियमानुसार सुलझा लें। परंतु प्रशासन की लगाम शासन के हाथों में होती है और शासन की लगाम चमचों के हाथ में होती है ,और चमचे जो किसी के बारे में कोई भी फीडबैक देते हैं उसी हिसाब से शासन ,प्रशासन को निर्देश देता है ,और प्रशासन शासन के आगे नतमस्तक होता रहता है ,चाहे वह कार्य सही हो या गलत हो, अगर प्रशासन यह कहे कि यह कार्य नियमानुसार नहीं है तो शासन का सीधा सा हुक्म होता है के नियमों को तोड़ना मरोड़ना और उसकी व्याख्या हमारी इच्छा अनुसार करना आपका काम है आपको इसी के लिए रखा गया है अगर आप हमारी इच्छा अनुसार कार्य नहीं कर सकते तो हम अपनी पसंद का आदमी आपके जगह बुला लेते हैं वह कर लेगा, अब आप बताइए प्रशासन के पास क्या चारा रह जाता है ??
आप इसे विडंबना कहेंगे या लोकतंत्र के लिए त्रासदी??
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