धर्म विश्वास
तिलक वालिया tct
- बड़े बुजुर्गो से सुना हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो #दर्शन_करने_के_बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है? यह प्राचीन परंपरा एक विशेष #उद्देश्य के लिए बनाई गई थी । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर हमें एक श्लोक बोलना चाहिए । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं… यह श्लोक इस प्रकार है –
अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि में परमेश्वरम् ।।
इस #श्लोक का अर्थ है…
#अनायासेन_मरणम्…… अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो, हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हों,, चलते फिरते ही मेरे प्राण निकल जाएं।
#बिना_देन्येन_जीवनम्………
अर्थात… परवशता का जीवन ना हो,
मतलब कि हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है, वैसे परवश या बेबस ना हों । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके।
#देहांते_तव_सानिध्यम ……..अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हों। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।
#देहि_में_परमेशवरम्….. हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।