बी के सूद मुख्य संपादक

योगी आदित्यनाथ कम से कम चुनाव तो लड़ रहे हैं…
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मीडिया के बड़े सेक्शन में इस बात पर बहस हो रही है कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ अयोध्या की जगह गोरखपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसी चर्चा बहुत कम हो रही है कि योगी जी कम से कम चुनाव तो लड़ रहे हैं। जी हां, पिछली बार वे सीएम बिना चुनाव लड़े ही बने थे। यही नहीं उनसे पहले यूपी में कई नेता बिना चुनाव लड़े ही सीएम बने हैं। उधर, बिहार के सीएम नीतीश कुमार जितनी बार सीएम बने, विधानसभा चुनाव लड़ा ही नहीं। महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे भी ऐसे ही सीएम है। इन राज्यों में अपर हाउस (विधान परिषद) नाम की एक चीज है जहां बगैर जनता का मत हासिल किए आप जनता पर राज कर सकते हैं। योगी से पहले सीएम रहे अखिलेष यादव भी एमएलए नहीं थे। विधान परिषद के सदस्य ही थे। मायावती भी पिछली बार बारास्ता विधान परिषद ही सीएम बनी थीं। ऐसे में योगी आदित्यनाथ की इस बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि कम से कम चुनाव लडऩे की हिम्मत तो दिखाई है। अयोध्या से क्यों नहीं लड़ रहे या गोरखपुर से ही क्यों लड़ रहे हैं, ये अलग विषय है। खैर चुनाव लडऩे की बात से उन्होंने दूसरे दलों में तो खलबली मचा ही दी है। मसलन अखिलेष यादव को भी विधानसभा चुनाव लडऩे बारे सोचना पड़ रहा है। मायावती का तो खैर अभी कोई अता-पता नहीं है।
ये विधान परिषदें भी एक ग़ज़ब की चीज हैं। इन्हें लेकर मैनें साल भर पहले भी एक पोस्ट लिखी थी। इस समय हमारे देश में उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, महाराष्ट्र और तेलंगाना में दो सदनो वाली प्रणाली है। पश्चिम बंगाल, असम, राजस्थान और ओडिशा में दूसरे सदन के गठन की कवायद चल रही है। विधानसभा में नेता लोग जनता के वोट से विधायक बनते हैं। लेकिन विधान परिषद में जनता का कोई रोल नहीं होता। उन्हें विधायक चुनते हैं। ये हारे-नकारे नेताओं को adjust करने के लिए (पार्किंग लॉट) है। लेकिन इसी रास्ते सीएम भी बना जा सकता है। विधायकों के बराबर ही सुविधाऐं होती हैं विधान परिषद सदस्यों की।
उस जमाने में सरदार पटेल ने भी कहा था कि विधान परिषदें बेरोजगार नेताओं को रोजगार देने के लिए बनाई जाती है। अब यदि 70 साल पहले भी यही लगता था तो आज तो कुछ का कुछ हो गया है। पहले वाले जम्मू कश्मीर में भी दो सदनों वाली प्रणाली थी। वहां नौकरी के दौरान मैनें इसे गहराई से समझा भी। कुछ भी नहीं है सिवा सरकारी खजाने पर हर साल करोड़ों-अरबों का बोझ लादने के सिवा। मजे की बात है कि आंध्र प्रदेश सरकार ने 2020 में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। खूब तारीफ हुई। लेकिन अब महीने भर पहले उसी विधानसभा में प्रस्ताव लाया गया है कि परिषद को जारी रखा जाएगा। कहा गया कि केंद्र ने उनके प्रस्ताव पर कोई फैसला ही नहीं किया लिहाजा उन्हें इसे जारी रखना पड़ा।
बहरहाल योगी आदित्यनाथ ने चाहे किसी सियासी मजबूृरी के चलते चुनाव लडऩे का फैसला किया हो लेकिन जनता के बीच जाना अच्छी बात है। हाँ, विधान परिषदों जैसे पार्किंग लॉट वाले सिस्टम पर गंभीर चिंतन की जरूरत है।
लेखक हेमंत
