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भारतीय जनता पार्टी में उठी चर्चा जिनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा उनके टिकट कटने की बढ़ी संभावनाएं

बी के सूद चीफ एडिटर

Bksood chief editor

सरकार की असफलताओं के लिए जिम्मेदार कौन -मंत्री या स्वयं मुख्यमंत्री -पार्टी में उठी चर्चा
जिनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा उनके टिकट कटने की बढ़ी संभावनाएं
सरकार की असफलता के लिए अधिकारियों पर भी होने लगा दोषारोपण
नेतृत्व पर भारी पड़ सकती है या चर्चाएं
शिमला/शैल। जयराम सरकार के इस कार्यकाल का यह अंतिम वर्ष चल रहा है। इस अंतिम वर्ष के लिए वार्षिक योजनाओं का भी आकार तय हो गया है। विधायकों से उनकी प्राथमिकताओं को लेकर बैठकें भी हो चुकी हैं। स्वाभाविक है कि आने वाला बजट चुनावी वर्ष का बजट होगा और उसमें हर वर्ग के लिए घोषणाओं का पिटारा होगा। यह घोषणायें भविष्य के लिए होती हैं और चुनाव इसी वर्ष के अंत में होने हैं तो उसके लिए आचार संहिता भी जल्द ही लागू हो जायेगी और उसी अनुपात में इन घोषणाओं के जमीन पर उतरने की जिम्मेदारी से सरकार बच जायेगी। इस परिदृश्य में यह आवश्यक हो जाता है कि मतदाता सरकार का आकलन करने के लिए इन 4 वर्षों में की गई घोषणाओं पर हुये अमल को मानक बनाये। इसके लिए हर बजट में की घोषणाओं की सूची और सरकार की कुल आय का आंकड़ा हर समय सामने रखना होगा। क्योंकि सरकार के सारे खर्च उसकी आय और उसके द्वारा लिये गये कर्जों पर ही निर्भर करते हैं। इसमें यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है की सरकार केवल विकास कार्यों के लिए ही कर्ज ले सकती हैं। जिससे भविष्य में आय के स्थाई साधन निर्मित हो सके। प्रतिबद्ध खर्चों की पूर्ति के लिए कर्ज लेने का नियमों में कोई प्रावधान नहीं है। सरकार जो पूंजीगत प्राप्तियां बजट दस्तावेज में दिखाती है वह शुद्ध रूप से कर्ज होता है और बजट दस्तावेज में कोष्ठक में लिखा भी जाता है। इस तरह सरकार के कुल बजट का 50% से भी अधिक कर्जों पर आधारित है और इसी के कारण प्रदेश लगातार कर्ज में डूबता जा रहा है। जो आने वाले समय के लिए भयानक समस्या खड़ी कर देगा। कैग रिपोर्ट यह सामने ला चुकी है कि विकास के नाम पर लिये जाने वाले कर्ज का वास्तव में एक भी पैसा विकास पर खर्च करने के लिये सरकार के पास नहीं बचा था बल्कि माईनस में चला गया था। यह स्थिति लगातार बनी हुई है। इस सरकार में इसकी गति और बढ़ गयी है क्योंकि कोरोना की आड़ में कर्ज लेने की सीमा 3% से बढ़कर 5% कर दी गयी। लेकिन इसके बावजूद यह सरकार 96 जनहित की योजनाओं पर एक पैसा तक खर्च नहीं कर पायी है। धर्मशाला सत्र के दौरान आई इस कैग रिपोर्ट पर यह सरकार अभी तक प्रदेश की जनता के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं कर पायी है जबकि हर समाचार पत्र में यह खबर प्रमुखता के साथ छपी है। बढ़ते कर्ज से महंगाई और बेरोजगारी लगातार बढ़ती है यह कड़वा सच है।
इस सरकार ने जब पहला बजट पेश किया था तब कर्ज जो विरासत में मिला था तब उसका करीब 46 हजार करोड सदन में बताया था जो आज बढ़कर करीब 70 हजार करोड हो गया है। ऐसे में यह सवाल बनता है कि जब 96 योजनाओं पर एक पैसा तक खर्च नहीं किया गया तो फिर यह कर्ज कहां खर्च किया। इस सत्र में यह जानकारी भी दी गयी है कि अब तक यह सरकार केवल 23000 लोगों को ही नौकरियां दे पायी है। जबकि इस दौरान सेवानिवृत्त हुए कर्मचारियों का आंकड़ा ही इससे अधिक है। इस दौरान सरकार द्वारा दी जाने वाली हर सेवा के दाम बढ़ाये गये इसका पता हर वर्ष बढ़े कर और गैर कर राजस्व से लग जाता है। भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार अदालतों के फैसले भी लागू नहीं कर पायी है। कसौली गोलीकांड का कारण बने अवैध निर्माणों पर टीसीपी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लोगों को नामतः चिन्हित करके उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिये गये थे जिन पर आज तक अमल नहीं हुआ है। बल्कि कुछ लोगों को तो उनके वरिष्ठों को नजर अन्दाज करके पदोन्नत तक कर दिया गया है। इस तरह प्रताड़ित हुए लोग नौकरियों से त्यागपत्र देने पर मजबूर हुए हैं क्योंकि मुख्यमंत्री उन्हें इंसाफ नहीं दे पाये हैं। स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की सरकार पर रिटायर्ड और टायर्ड लोगों के हावी होने का जो आरोप भाजपा लगाती थी उसी में यह सरकार दो कदम और आगे बढ़ गयी है। संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अपनी निष्पक्षता का सरेआम राजनेताओं से अपने रिश्तो का प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार उनके आगे मुक दर्शक बनकर बैठी हुई है। अदालतों का कितना सम्मान यह सरकार करती है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद आज तक लोक सेवा आयोग के सदस्यों और अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए नियम नहीं बना पायी है।
एनजीटी के आदेशों की अनुपालन में यह सरकार किस तरह असफल रही है यह खुलासा पहले ही पाठकों के सामने रखा जा चुका है। रोचक तो यह है कि सितंबर 2018 में राजकुमार राजेंद्र सिंह बनाम एस जे वी एन एल मामले में आये फैसले पर यह सरकार आज तक अमल नहीं कर पायी है। जबकि फैसले के मुताबिक दो माह में यहां रिकवरी होनी थी। इससे कई करोड़ सरकार के खजाने में आने थे। पिछली सरकार ने जिस स्कूल वर्दी घोटाले के सप्लायरों के करोड़ों रुपयों का भुगतान बतौर जुर्माना रोक दिया था। इस सरकार ने आते ही वह सारा पैसा सप्लायर को लौटा दिया। विभाग ने इस मामले को उच्च न्यायालय में ले जाने की फाइल चलाई लेकिन ऊपर के निर्देशों से ऐसा नहीं हो पाया और सरकार को करोड़ों का नुकसान हो गया। जिन अधिकारियों ने खेल खेला वह आज मुख्यमंत्री के अति विश्वास्तों में शामिल हैं। दर्जनों ऐसे मामले हैं जहां सरकार को करोड़ों का नुकसान पहुंचाया गया है।
ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि सरकार की असफलताओं के लिये किसे जिम्मेदार ठहराया जाये। सरकार के मंत्रियों को अधिकारियों को या स्वयं मुख्यमंत्री को। पिछले दिनों जब शिमला के बाद धर्मशाला में कार्यकारिणी की विस्तारित बैठक हुई थी और नेतृत्व परिवर्तन का मुद्दा उछला था तब यह चर्चा उठी थी कि आने वाले चुनाव में कई विधायकों /पूर्व विधायकों और मंत्रियों के टिकट कटेंगे। तबसे उठी यह चर्चा मीडिया के कुछ वर्गों में यह शक्ल ले रही है कि मुख्यमंत्री को असफल करने के लिये सरकार के कुछ मंत्री और संगठन के पदाधिकारी जिम्मेदार हैं। जबकि कुछ सरकार से बाहर बैठे मुख्यमंत्री के सलाहकारों को इसके लिये जिम्मेदार मान रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि आने वाले दिनों में भाजपा के अंदर यह एक अहम मुद्दा होगा कि सरकार की असफलताओं के लिये किसे जिम्मेदार माना जाये। क्योंकि यह सभी मान रहे हैं कि सरकार हर मोर्चे पर असफल रही है। इस सरकार की बजटीय घोषणाओं पर ही नजर डाली जाये तो इसके अधिकांश मंत्री उनके विभागों से जुड़ी घोषणाओं पर ही कुछ कहने की स्थिति में नहीं है।

लेखक :बलदेव शर्मा स्वतंत्र लेखक

Baldev Sharma

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