Bksood chief editor

डॉ राजन सुशांत पिछले 300 दिनों से अधिक समय से धरने पर हैं ।
कोई इनकी सुनता क्यों नहीं?
क्या इनकी कोई अपनी निजी मांग है?
क्या इन्होंने कोई गोलमाल किया और उसके केस यह वापस करवाना चाह रहे हैं?
क्या लोगों के हित की आवाज उठाना इस लोकतंत्र में नक्कारखाने में तूती बजाने के समान हो गया है ?
सुना है अंग्रेज हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की बिल्कुल नहीं सुनते थे उनकी आवाज को दबा देते थे लेकिन वह तो अंग्रेज थे, तानाशाह थे। यहां तो हमारी अपनी ही चुनी भी सरकारें हैं, लोकतंत्र है तथा मांग करने वाले भी भारतीय हैं और मांगों को मानने वाले भी भारतीय हैं।फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है।
क्या इन्होंने यह गलत निर्णय लिया कि अपनी विधायक और मंत्री की पेंशन छोड़ दी ?क्या ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग करना नाजायज है ?जहां आज के नेता सिर्फ चंद मिनटों के लिए का धरने पर बैठते हैं, वहीं पर राजन सुशांत 300 से अधिक दिनों से धरने पर बैठे हुए हैं और उन्होंने इतनी कड़कती ठंड और भरपूर बरसात तथा भीषण गर्मी में भी अपने घर का रुख नहीं किया । घर से दूर 4 किलोमीटर आगे पीछे रहने के बावजूद भी इन्होंने अपने घर की दहलीज नहीं लांघी । केवल जनता के मुद्दे उठाने तथा उनकी समस्याओं के समाधान के लिए वरना इतना साधन संपन्न हाथ में घर से दो-तीन किलोमीटर दूर किस तरह अपने परिवार से अलग रह सकता है ।
इन्हें क्या पड़ी की यह जनता की समस्याओं के लिए इतने कष्ट सहें।
इन्हें क्या पड़ी कि यह अपनी 2-2 पेंशन छोड़ दें .परन्तु इन्होंने किसी सिद्धांत के लिए अपनी पेंशन छोड़ी ।आज के युग में कोई ₹500 किसी को छोड़कर राजी नहीं तो लाखों रुपए महीने की पेंशन का त्याग करना वह भी लोकहित के लिए किसी भी त्याग से कम नहीं। पेंशन छोड़ने की वजह से इनके लोन की किस्त नहीं गई और बैंक से नोटिस आ गया कि आपका घर नीलाम कर दिया जाएगा । ये जनता कब समझेगी जो जनता के लिए इतना संघर्ष कर रहा है उसी को हरा कर रख दिया? जिसने जनता को पेंशन लगवाने के लिए अपनी पेंशन छोड़ रखी है उसी का घर नीलाम होने के कगार पर है? फिर भी लोग समर्थन नहीं कर रहे? Dr Rajan Sushant
हम लोग किस का समर्थन करते हैं केवल उनका जो अपना मतलब निकाल कर साम दाम दंड भेद तथा झूठ सच का सहारा लेकर अपनी कुर्सी कायम रखते हैं ?क्या उन्हीं लोगों को जनता पसंद करती है ?
शायद हां जनता उन्हीं लोगों को पसंद करती है जो सच झूठ बोलकर सुनहरी सपने दिखाकर जनता को बहला-फुसलाकर आपके वोट ले लेते हैं और बाद में आपको ही भूल जाते हैं ,और जनता भी इतनी भोली है कि वह भी उनके द्वारा किए गए वादों को भूल जाते हैं कि उन्होंने हमारे लिए ,हमारी भलाई का काम करना था। वे लोग कितने भी मतलबी क्यों न हों, मंत्री भी वही बनते हैं ,और वही लोग पेंशन भी लेते हैं ,और वही लोग साम दाम दंड भेद सब कुछ अपना कर सारा कार्य अपने हित में करवाते रहते हैं ।
राजन सुशांत ने लोगों के मुद्दों के लिए जितनी कुर्बानी की है शायद ही प्रदेश के किसी और नेता ने नहीं की ,और साधन संपन्न होने के बावजूद भी लोगों के हितों के लिए उनके दुख दर्द को समाधान के लिए उनकी आवाज बने ,खुद कष्ट सह रहे हैं इससे बड़ी कुर्बानी और कुछ नहीं हो सकटी। इससे बड़ा त्याग और कुछ नहीं हो सकता ।
लेकिन हमारे देश की जनता है कि ऐसे नेताओं को पसंद ही नहीं करती और उन्हें हरवा कर रख देते हैं, ताकि उनका मनोबल टूट जाए। हमारे भारत देश के लोकतंत्र की विडंबना यह है कि यहां पर व्यक्ति के चरित्र की पहचान नहीं होती केवल पार्टी से ही इंसान और नेता की पहचान की जाती है इंसान कितना ही अच्छा हो अगर वह किसी प्रभावशाली पार्टी में नहीं है तो वह कुछ भी नहीं है और अगर व्यक्ति शून्य है और सही पार्टी में है तो वह भी जीरो से हीरो बन जाता है ।
यह बात बिलकुल सही है की पार्टी के बिना कितना भी साधु संत त्यागी समर्पित राष्ट्रवादी इंसान हो उसकी वैल्यू कोई नहीं ,वह बिना पार्टी के जीरो है लेकिन अगर आपके पीछे पार्टी है तो आप कितने ही शातिर, दबंग, दबंगगई दिखाने वाले बाहुबली तथा दुनिया के सब अबगुणों से भरपूर क्यों ना हो आप जीत जाओगे। यह भारतीय लोकतंत्र का कटु सत्य है यहां सत्यमेव जयते नहीं होता यहां शायद इसके उल्टा होता है ।
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