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*पाठकों के लेख एवं विचार: “हम” लेखक उमेश बाली*


*पाठकों के लेख एवं विचार:’हम’ लेखक उमेश बाली*
हम
देश में इस समय हिन्दू और मुस्लिम हो रहा है अपने अपने तर्क है सभी के , राजनीतक दल दो खेमों में बंटे हुए हैं धर्म निरपेक्ष और दक्षिण पंथी , बीच में धर्म को अधिक महत्व न देने वाले वाम पंथी दल । लेखक यह सोचता हैं कि इतनी नफ़रत कहां से पैदा हो रही है कि लड़कियो के टुकड़े हो रहे हैं और हिमाचल तक में यह आग पहुंची और एक लड़के के अंग काट दिए । हम इंसानों में बस रहे हैं या दरिंदो में ? सोचने वाली बात है क्या यह सारा जहर पिछले हजार साल से पनप रहा थे जिसे 1947 के बाद फिर निकलने का मौका मिल रहा है । मेरे विचार हैं दुनिया नफरत से नही प्यार से ही चलती है और चलेगी भी । सब से बडा डर इस बात का लग रहा है मुझे कि कहीं नफरतों के बोझ से हम भी वैसे ही मूर्ख बन जायेंगे जैसें वो हैं ? क्योंकि नफरत तो ऐसे ही करेगी । जब गोधरा का जघन्य कांड हुआ और यात्री जला दिए गए तो रूह तक कांप गई ,लेकिन हमारी लचर कानून व्यवस्था , लंबी न्याय प्रक्रिया और शिथिल जांच एजेंसियों की वजह से वहां मुस्लिम के खिलाफ प्रतिक्रिया शुरू हुई । अपराधी कुल मिला कर दस होगें जिन्होंने रेल में आग लगाई लेकिन जब प्रतिक्रिया शुरू हुई तो हिंदुओं ने भी तालिबान भी मात कर दिए और उन मुस्लिम महिलाओ का भी बलात्कार हुआ जिनका गोधरा से कोई दूर दूर का वास्ता भी नही था तो क्या उस समय हम नफरत के बेग में वैसे ही नही बन गए जैसें गोधरा के कातिल थे ? दूसरा किस्सा लिजिए सहिष्णु धर्म हिन्दू का दरिंदो ने हमारी लड़कियों को मारा , लव जिहाद के नाम पर जिन अपराधियों ने मारा उनकी चार्जशीट को ही बरसों लगेंगे फिर सजा होने में जब की नफरत का बाजार कब गर्म हो जाए और आग लग जाए कुछ पता नहि उत्तराखंड से पलायन शुरू हो गया हिमाचल में क्या होगा कुछ पता नहीं । लेकिन सवाल यहां यह उठता है उन्होंने दस बीस या कुछ अधिक हिन्दू लड़कियों के टुकड़े कर धर्म के नाम पर तो हम आग बबूला हैं जबकि हम हिंदुओं ने करोड़ो कन्याओं के धर्म के इस प्रपंच पर की वंश वृद्धि के लिए पुत्र की अवश्यकता है, कितनी करोड़ो बच्चियों के टुकड़े गर्भ में ही कर दिए , बताइए उनमें और हममें अंतर कहां रह गया ?? हरियाणा के गांवों में इतनी महिलाओ की कमी हो गई कि लड़कियों का अपहरण या खरीद लाते थे और चार चार भाई एक लड़की से ब्लातकार करने लगे । रात के समय कोई ऐसी गाड़ी सुरक्षित नहीं रही थीं जिसमें महिलाऐं हो । पुलीस ने हाथ खडे कर दिए थे खाप वाले लड़कों के इन अपराधों में मदद को आ जाते थे बताइए नफरत में दोनो तरफ क्या अंतर है और नफरत में तब हम कितने जालिम हुए थे जब एक राजनितिक दल के नेताओं के कहने पर सिखों का नरसंहार किया था? लेकिन राजनेतिक दलों का धार्मिक संतो का क्या जाता है मरती तो जनता है । इसलिए सावधान रहीए भीड़ से बचिए मेरे कुछ मित्र भी इस भीड़ की चपेट में है प्रभु रक्षा करें ।
