पाठकों के लेख एवं विचार

*पाठकों की प्रस्तुति: “मनमोहन सिंह धर्मपुर” की कविता*

बी के सूद चीफ एडिटर टीसीटी

Bksood chief editor tct

उजाले मगरिब में ढल गए,
जीवन में बस तम रह गए।

दोस्तों की नफरी भी घटाने लगी,
‘ तूं ‘ कहने वाले कम रह गए।

पूनम की रात में भी चांद दिखता नहीं,
ज़िंदगी के साज़ में सम रह गए।

तेरे गेसुओं के साए में कटेगी ज़िंदगी,
इसी आस में हम रह गए।

तकल्लुफ से सब बात करने लगे,
जुल्फों में पेच- ओ- खम रह गए।

बातें दिल की बताते किसे,
खुद से ही लड़ते जंग रह गए।

– मनमोहन सिंह

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