*Editorial सरकारी महकमों की उदासीनता/लापरवाही*
जो आप नीचे पौधे देख रहे हैं यह देवदार के पौधे देवदार के पौधे ना केवल बेशकीमती होते हैं बल्कि यह हिमाचल की पहचान है हिमाचल की पहचान सुंदरता और इसकी सम्मान देवताओं से है देवदार जहां भी हैं वह उस जगह की सुंदरता को चार चांद लगा देते हैं।
पालमपुर में भी बहुत पहले देवदार लगाए जाते थे परंतु बाद में यह चलन बंद हो गया लेकिन आजकल फिर से कुछ संस्थाओं की कोशिश की वजह से उनके प्रयासों से देवदार के पौधे लगाए जा रहे हैं जिसका जीता ज्यादा का प्रमाण है कैप्टन विक्रम बत्रा के मैदान में लगाए गए देवदार के पौधे यहां पर कुछ संस्थाओं द्वारा पौधारोपण किया गया परंतु अफसोस की बात की यह देवदार के पेड़ जीवित रहे लेकिन इन्हें फलने फूलने की इजाजत नहीं दी गई और वह सब यहां की सरकारी तंत्र की नाकामी को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं हैरानी की बात तो यह है कि जहां यह पौधे लगे हैं उसके सामने ही डीएफओ का ऑफिस है जो कि जंगलों की हिफाजत और पेड़ों की सुरक्षा के लिए वचनबद्ध है और साथ ही जिम्मेवार भी क्या हमारे डिपार्टमेंट इतने गरीब हो गए हैं कि वह इन चंद देवदार के पेड़ों को भी नहीं बचा सके धौलाधार समिति ने तो इसे लगा दिया ट्री गार्ड भी लगा दिए परंतु सामने डीएफओ का ऑफिस है बकरियों और जानवरों द्वारा इन पेड़ों को ऊपर से खा लिया गया है तथा इनकी ग्रोथ रुक गई है
अगर इन्हें समय रहते अच्छी तरह से ट्री गार्ड लगा दिए जाते तो यह आज को काफी मुझे चले गए होते परंतु ऐसा सोचे कौन और ऐसा करें कौन ऐसा नहीं है कि सरकारी विभागों के पास संसाधनों की कमी है अभी नगर निगम में ही इतने बेकार से ट्री गार्ड पड़े हैं जिन्हें वह स्क्रैप में 10 या ₹15 किलो के हिसाब से बेच देंगे और एक ट्री गार्ड के डेढ़ सौ या ₹200 कमा लेंगे परंतु मैं इन पेड़ों को बचाने के लिए कभी कुछ नहीं करेंगे क्योंकि सरकारी नियम है कि बने रहो पगला काम करेगा अगला क्या यहां से निगम के अधिकारी या पार्षद नहीं गुजरते क्या यहां पर अन्य प्रशासनिक अधिकारी या वन विभाग के अधिकारी नहीं आते सभी आते हैं क्योंकि विक्रम बत्रा मैदान में अक्सर कोई ना कोई कार्यक्रम होता रहता है और इस कार्य क्रम में इन सभी को बुलाया जाता है परंतु जब तक कोई बताएगा नहीं तो इन्हें क्या ख्वाब आएगा कि कहां पर क्या कमी है बहुत अफसोस होता है हमारे इंडियन डेमोक्रेटिक सिस्टम पर क्या इन पेड़ों को बचाने का जिम्मेवारी भी पालमपुर वेलफेयर एंड एनवायरमेंट प्रोटेक्शन फोरम की ही है। इस संस्था ने कितने चाव से यह पेड़ लगाए होंगे कि यहां पर पालमपुर की शान में चार चांद लग जाए लेकिन इसको पचाने की जिम्मेवारी लेने वाली सरकारी तंत्र एक दूसरे के मुंह ताक रहे होंगे और कह रहे होंगे पहले आप पहले आप।
अगर हमारे सिस्टम में काम करने की इच्छा हो तो देश हित में हम बहुत कुछ कर सकते हैं सामने ही पीडब्ल्यूडी का ऑफिस है जिसमें लाखों का नहीं करोड़ों के बजट आते हैं तो क्या वे लोग भी चैरिटी के नाम पर इन पेड़ों को नहीं बचा सकते और यह दावे से कहा जा सकता है कि अगर कोई भी ऑफिसर चाहे वह कितनी ही छोटे लेवल का हो इन्हें बचाने की को थाम ले तो वह बिना किसी की सहायता की भी इन्हें बचा सकता है परंतु ऐसा सोचे कौन और ऐसा करें कौन यही हमारे देश की त्रासदी है नरेंद्र मोदी बिल्कुल सही कहते हैं कि मैं क्यों मेरा क्या वाले नियम पर हम कार्य करते हैं इन पेड़ों को बचाने की किसी की जिम्मेवारी नहीं यह बात बिल्कुल सही है किताबों में ऐसा कहीं नहीं लिखा गया है कि यह पेड़ किसे बचाने है और यह किसकी जिम्मेदारी है और नियमानुसार किसी की भी जिम्मेवारी नहीं है यह बात हम सभी जानते हैं अगर जिम्मेवारी है तो सिर्फ उस एनजीओ की जिसने यह पेड़ लगाए हैं