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*कश्मीर फाइल्स लेखक उमेश बाली*

कश्मीर फाइल्स

Umesh bali tricity times

आज कश्मीर का नरसंहार क्यो हुआ इस पर बहस जारी है । वास्तव में कश्मीर समस्या आजादी के साथ पैदा हुई इस के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है । यह भी एक सत्य है कि कश्मीर को आज तक सब सरकारें पाकिस्तान और भारत के बीच में द्विपक्षीय मामला मानती है जिसमें पाक हमेशा इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाता रहता है यह भी सबको मालूम है । काश्मीर में अधिकतर अब्दुल्लाह परिवार का राजनीतिक तौर बर्चस्व रहा है । कांग्रेस भी सत्ता में काफी भागीदार रही है । जो बात जनता नहीं जानती वो यह है कि अब्दुल्लाह परिवार आरम्भ से ही या यू कहें नेहरु के समय से ही भारत को ब्लैक मेल करती रही रही है और भारत सरकारें काश्मीर को साथ रखने के चक्र में ब्लैकमेल होती रही और कश्मीर का तुष्टिकरण करती रही या यूं कहिए अब्दुल्ला परिवार का तुष्टिकरण करती रही । बीच में नेहरु जी इस बात को समझे भी और शेख अब्दुल्लाह को जेल में भी भेज बाद में समझौता होने पर छोड़ दिया । कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने चुनावों में धांधली करके भी कश्मीर में सत्ता सुख भोगा यही से अलगाव के बीजों ने वृक्ष क रूप लेना शुरू किया ।

काश्मीर के पंडित अपेक्षाकृत अधिक पढ़े लिखे थे और इस वजह से समृद्ध भी हुए । उनको समृद्धि भी वहां के लोगों को चुभती थी यही से राजनीति की बिसात भी दूसरे रूप में बिछने लगी । दूसरी तरफ पाक सीधे युद्ध में भारत से काश्मीर को नहीं छीन सकता था , उसने 1948 में फिर 1965 में कोशिश की ।1965 में हमारे एक जाबांज पायलट ने पाक के छह जेट गिरा कर काश्मीर को बचाए ,उन फाइटर का नाम निर्मल जीत सिंह सेखों था जो कि एक सिख परिवार से थे और उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला ।
इसके बाद पाक के नेताओं ने 1971 के बाद अपनी रणनीति बदल दी और 1980 में प्रोक्सी वार शुरू कर दी उग्रवाद के रूप में । भारतीय राजनीति भी बदलने लगी । अब्दुल्लाह की एनसी , अलगाववादी हूरियत सक्रिय हो गई और जेकेएलएफ की स्थापना हुई इसके साथ ही पीडीपी भी राजनीति में जनाधार बढ़ाने लगी । बम धमाके शुरू हुए , हथियार चलने लगे , हत्याएं शुरू हुई देखा देखी पंजाब में भी खालिस्तानी आंदोलन और एके 47 का प्रयोग होने लगा । इसके पीछे पाकिस्तान , कश्मीर के अलगाववादी तो थे ही भारत सरकार की राजनीति भी थी।
हालात बहुत बिगड़ गए सेना भी सीमित शक्तियों के साथ लगाई गई । सेना पंजाब में फ्री हैंड थी उसने पंजाब पुलिस के साथ मिलकर पंजाब में उग्रवाद कुचल दिया । दूसरी तरफ काश्मीर में भारत सरकार नरम दिखी । भारत सरकार ने काश्मीर में एक हाथ में लड्डू और दूसरे में डंडा रखा , नतीजा दर्द बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा दी गई ।
भारत की राजनीति एक इस्लाम की एक आधारभूत भूल गई की मुस्लिम लोगो में एक वर्ग ऐसा है जो जिहाद के नाम पर कभी भी संगठित हो जाता है , यह बात नरम अलगाववादी और कश्मीर की एनसी और पीडीपी बखूबी जानती थी , पाकिस्तान भी इस बात को जानता था लिहाजा इन लोगो ने राजनीति का खेल खेला और काश्मीर की आज़ादी को जिहाद के साथ जोड़ दिया गया ।यह वो जिहादी थे जिन्होंने हिंदुओ , सिखो पर ज़ुल्म ढाए और पलायन को मजबूर कर दिया ।ना तो राजीव गांधी दम दिखा सके , ना वीपी सिंह और ना तब बीजेपी जो समर्थन दे रही थी वो कुछ कर सकी । जगमोहन का विरोध ,कांग्रेस ने भी किया था , एन सी ने भी किया और पीडीपी ने भी किया । इसी घटनाक्रम में मुफ्ती की बेटी अगवा हुई फिर उग्रवादियों को छोड़ने का क्रम शुरू हुआ जो वीपी सिंह सरकार में भी हुआ ,कांग्रेस में भी हुआ और वाजपेई सरकार में भी हुआ ।
काश्मीर के हालात पर हर भारत सरकारों की दो भाषाएं थी , एनसी की भी दो भाषाएं थी । काश्मीर में कांग्रेस , एनसी , बीजेपी दोनों अलग भाषा बोलती थी और देहली में अलग। यहां तक की मोदी भी शुरूआत में इस गफलत में थे लेकिन आरएसएस के कार्यकर्ता माधव राव वहां सबकुछ भांप गए और सारी नीति बदली और बीजेपी 370 पर अपने स्टैंड पर लौट आईं ।
वाजपेई जी भी बहुत ब्लंडर कर गए थे ,1 काश्मीर पर नरम रुख 2 पाक से नरम रुख नतीजा कारगिल अपनी ही जमीन पर लड़ा गया युद्ध 3 कंधार हाई जैक में जहाज को अमृतसर से उड़ने की इजाजत देना और विदेश मंत्री का उग्रवादियों को छोड़ने जाना ,4 संसद पर हमला और खामोश रहना ।
इसके बाद फिर कांग्रेस फिर वो नरमी उग्रवादियों से नरमी , उसके बाद वर्तमान सरकार पहले नरमी फिर राजदंड पकड़ना एक सही तरीका ।
जिहादी मानसिकता को अपने लाभ के लिए राजनीति द्वारा इस्तेमाल करना इस मसले के मूल में है । पाक भी यही कर रहा है , भारतीय बहुत से राजनेता भी यही कर रहे है और भारत के मुस्लिम नेता भी यही कर रहे है , उनसे जनता को सावधान रहना चाहिए । याद रखिए हत्या कहीं भी हो राजनीतिक दलों के लिए केवल मुद्दा होती है हमदर्दी नहीं आप ने बलात्कार के मामलों में , दंगो के मामले और हत्याओं के मामले में यही देखा होगा । क्या किसी ने न्याय होता देखा है ? न्याय बहुत कम मिलता है और एक लंबे समय के बाद कहीं मिल भी गया तो क्या मतलब ? इसमें सरकारें भी , विपक्ष भी , जज भी और वकील भी सभी दोषी है । व्यवस्था को सुधारने की आवश्यकता है ।

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