*सड़क पर कानून नहीं, ट्रक व बस तथा बाइक राज चलता है*


Editorial
सड़क पर कानून नहीं, ट्रक व बस तथा बाइक राज चलता है

जब रात का सन्नाटा ट्रकों के हॉर्न से चीरता है और कानून मौन रहता है
हमारे देश की सड़कों पर रात होते ही एक अलग ही सत्ता का उदय हो जाता है — यह सत्ता है भारी ट्रकों की, जिनके सामने न तो कानून की कोई गरिमा बचती है और न ही आम नागरिक की सुरक्षा। ये वे वाहन हैं जो 12, 16 या 18 टायरों पर चलते हुए खुद को सड़क का बादशाह मानने लगे हैं। नियम इनके लिए नहीं हैं, हॉर्न कब और कैसे बजाना है, इसकी मर्यादा इनके लिए बेमानी है, और इंसानी ज़िंदगियां इनके लिए आंकड़ों से ज़्यादा कुछ नहीं।
रात के समय जब शहर सो जाता है, तब यही ट्रक सड़कों पर अपनी तेज़ रफ्तार और कान फाड़ देने वाले हॉर्न के साथ राज करते हैं। उनके मॉडिफाइड हॉर्नों की गूंज कई किलोमीटर दूर तक पहुंचती है। यह केवल ध्वनि प्रदूषण नहीं है — यह एक भय पैदा करने का तरीका बन चुका है। कॉलोनियों में रहने वाले लोग जब आधी रात को नींद से चौंककर उठते हैं, तो यह किसी चोर या आपदा के कारण नहीं होता, बल्कि एक ट्रक के अहंकार में बजाए गए हॉर्न की गूंज से होता है।
सबसे गंभीर बात यह है कि इन ट्रकों के चालकों को न किसी छोटी गाड़ी की परवाह है, न किसी पैदल यात्री की। उनके लिए सड़क के बाकी हिस्सेदार कीड़े-मकोड़े से ज्यादा नहीं। ट्रक ड्राइवरों में एक मानसिकता विकसित हो गई है — “अगर कोई दुर्घटना हो भी गई तो क्या? जमानत मिल ही जाएगी। मुकदमा चलेगा दस साल, और अंत में दो-चार महीने की सज़ा? चलने दो…” यही सोच सबसे बड़ा ज़हर बन चुकी है, जो कानून और समाज दोनों को खोखला कर रही है।
विडंबना यह है कि हर ट्रक एक रजिस्ट्रेशन नंबर, फिटनेस सर्टिफिकेट और लाइसेंसधारी चालक के साथ सड़कों पर चलता है — यानी हर ट्रक प्रशासन की जानकारी में है। फिर भी न तो ध्वनि सीमा का पालन होता है, न गति सीमा का। ट्रक में लगाए गए एयर प्रेशर हॉर्न, मल्टी-टोन सायरन और अतिरिक्त हेडलाइट्स पूरी तरह गैरकानूनी हैं, लेकिन किसी भी जांच नाके पर इन्हें रोका नहीं जाता। क्या ट्रैफिक पुलिस की आंखें इन हॉर्नों की तरह तेज़ नहीं हैं? या फिर यह सब एक सुनियोजित अनदेखी का हिस्सा है?
बसों का हाल भी कुछ अलग नहीं है।
कई बार यह देखा गया है कि बसें और ट्रक छोटे वाहनों को पास नहीं देते। कारें, बाइकें और स्कूटर कई बार 10-10, 20-20 किलोमीटर तक इन भारी वाहनों के पीछे धुएं में घिसटती हैं। चाहे कार में कोई बीमार हो, महिला हो, बुजुर्ग हो या किसी को आपातकालीन स्थिति में कहीं पहुंचना हो — इन भारी वाहनों की दादागिरी के आगे किसी की नहीं चलती। उन्हें ओवरटेक करना मानो एक ‘गुनाह’ हो और इन्हें पास देना उनकी ‘शान’ के खिलाफ। यह न केवल ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन है, बल्कि मानवता और नैतिकता का भी अपमान है।
रात को सन्नाटा नहीं, साइलेंसर फाड़ते बाइक और मल्टी-टोन हॉर्न सुनाई देते हैं।
शहरों और कस्बों की रातें अब सुकून की नहीं रहीं। कई बाइकों और कुछ निजी वाहनों में मॉडिफाइड साइलेंसर लगाए गए हैं, जो हर एक्सेलेरेशन के साथ ऐसा शोर पैदा करते हैं, जैसे किसी बम की आवाज़ हो। ये तेज़, फटाकेदार आवाज़ें न केवल कानों को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि दिल के मरीजों, बुजुर्गों और छोटे बच्चों के लिए खतरे का कारण बन चुकी हैं।
इतना ही नहीं, मल्टी-टोन हॉर्न — जिनकी ध्वनि एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड या पुलिस सायरन से भी अधिक तेज और भ्रामक होती है — अब आम बाइकर्स की ‘शान’ बन चुकी है। ये न केवल कानूनन प्रतिबंधित हैं, बल्कि यह सीधे तौर पर पब्लिक को डराने, ग़लत रास्ता पाने और ट्रैफिक में धौंस जमाने का ज़रिया बन चुके हैं। बावजूद इसके, इन पर कार्रवाई न के बराबर होती है।
प्रशासनिक ढांचे में इतनी ढिलाई है कि अगर किसी नागरिक की जान भी जाती है, तो कार्रवाई तब होती है जब मीडिया आवाज़ उठाए या जनदबाव बढ़े। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
अब समय आ गया है कि इस अघोषित ‘ट्रक व बस राज’ पर लगाम लगाई जाए। हर उस वाहन को — जो ध्वनि और प्रकाश के नियमों का उल्लंघन करता है — तत्काल जब्त किया जाए। ऐसे चालकों का लाइसेंस रद्द हो और मालिकों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाएं। केवल चालान काटने से कुछ नहीं होगा। जब तक कानून की आवाज़ ट्रक के हॉर्न से ऊंची नहीं होगी, तब तक सड़क पर न्याय केवल एक कल्पना बना रहेगा।
देश की सड़कों को जंगल नहीं बनने देना है, और यह जिम्मेदारी केवल नागरिकों की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की है। अगर प्रशासन आज भी नहीं जागा, तो कल हर दुर्घटना एक मामूली खबर बन जाएगी — और ट्रक व बस राज चलता रहेगा।



