*Editorial*हिमाचल के मेलों में लोकल कलाकारों को मिलनी चाहिए तरजीह*
*हिमाचल के मेलों में लोकल कलाकारों को मिलनी चाहिए तरजीह*
आजकल पूरे हिमाचल में मेलों का दौर शुरू है ।हर मेले में सांस्कृतिक संध्याये होती है और सांस्कृतिक संध्याओं पर बहुत अधिक खर्च किया जाता है। और कलाकार बाहर से बुलाए जाते हैं, जबकि हमारे अपने एरिया के लोकल कलाकारों को कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। बहुत कम समय में उन्हें निपटा दिया जाता है।
कल सलियाणा मेले में बैजनाथ के एक लोकल कलाकार जो पहाड़ी गाना बहुत अच्छी तरह से गा रहे थे परंतु उन्हें शायद अपने गाने के दो स्टेप भी गाने को नही मिले ,जबकि वह सुर ताल और आवाज में बहुत माहिर लग रहे थे। मैं उनका नाम नहीं जानता परंतु गाना शुरू होते ही उनका गाना खत्म हो गया, हालांकि ऐसा लग रहा था कि उनकी आवाज में दम है और पंडाल में बैठे लोग उनके गाने को इंजॉय कर रहे हैं।
उसके बाद अन्य कलाकार भी आए सभी ने अपनी प्रस्तुति दी परंतु यह एक प्रमोशन मंच ही लग रहा था क्योंकि कुछ कलाकार ऐसे थे जो बिल्कुल भी समां नही बांध पा रहे थे।
ऐसा नहीं है कि इनको चांस नहीं मिलना चाहिए परंतु प्रबंधक कमेटी को यह चाहिए कि जो नए कलाकार हैं उन्हें मंजे हुए कलाकारों से पहले समय देना चाहिए ,ताकि वह अपनी प्रस्तुति लोगों के सामने दे सके क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि पंडाल में लोग बैठे हो तभी लोग वह कार्यक्रम देख रहे होते हैं।
आजकल लाइव टीवी का जमाना है लोग गोलगप्पे खाते हुए और जलेबी का मजा लेते हुए भी अपने अपने मोबाइल पर उसी मेले में लाइव कवरेज देख रहे होते हैं।
हमें बाहर से महंगे कलाकार बुलवाने की जगह लोकल कलाकारों को ज्यादा तरजीह देनी चाहिए जो कि हमारे स्थानीय संस्कृति और गानों को से जुड़े हुए हैं, उसको सजोए हुए रखे हैं। क्योंकि हिमाचल के लोकल कलाकारों को किसी दूसरे राज्य में कोई स्थान बहुत मुश्किल से मिलता है और उन्हें अगर अपने ही शहर में स्थान नहीं मिलेगा तो फिर वह कहां जाएंगे ?
यह एक सुझाव है मानना ना मानना मेला का बंधक कमेटी की इच्छा पर निर्भर है। देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें
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