*Tricity Times की ट्राइसिटी टाइम्स की तरफ से चैत्र मास नवरात्रि के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मां भगवती आपके सभी दुखों को दूर करें आपको स्वस्थ रखे तथा आप सुख समृद्धि व स्वास्थ्य से सराबोर रहे*
चैत्र मास नवरात्रि पर आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मां भगवती आपके सभी दुखों को दूर करें आपको स्वस्थ रखे तथा आप सुख समृद्धि व स्वास्थ्य से सराबोर रहें💐🙏🌼🌺🙏💐🌹🌷 आज आपको मां शैलपुत्री के विषय में संक्षिप्त जानकारी प्रदान करने की कोशिश करेंगे
मां शैलपुत्री का पूजन नवरात्रि के प्रथम दिन किया जाता है तथा इसमें यह मंत्र का उच्चारण किया जाता है
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:। वन्दे वाच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए अतिआवश्यक है।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥मां शैलपुत्री एक मार्मिक कहानी है। एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया।बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा। वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया।यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं।पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं।जय मां बनखंडी बगलामुखी