धार्मिक
*”क्या अच्छे कर्म ही काफी हैं ,भक्ति करने की आवश्यकता ही नहीं है”*
”क्या अच्छे कर्म ही काफी हैं ,भक्ति करने की आवश्यकता ही नहीं है”
प्रिय पाठको पिछले लेख में हमने चर्चा की थी कि क्या भक्ति सिर्फ वृद्धावस्था में ही करनी चाहिए या हमें बचपन से ही भक्ति के दिव्य पथ पर चलना चाहिए। आज हम चर्चा करेंगे कि क्या अच्छे कर्म ही काफी है ,भक्ति की आवश्यकता ही नहीं है
आधुनिक युग में फंसा हुआ हर एक इंसान अपनी इच्छाओं के पीछे उलझा हुआ है ।अच्छे कार्य करने वाले और भक्ति मार्ग पर चलने वाले लोग विरले ही मिलेंगे। जो अच्छे कार्य कर रहे होंगे उनके मन में यह भाव रहता ही है कि हम अच्छा कर रहे हैं, हमें भक्ति करने की जरूरत नहीं है।
लेकिन हमें समझने की जरूरत है अच्छा कार्य करने से हम सब के अंदर सूक्ष्म अंहकार रहता है कि हमने अच्छा किया। अच्छा करना यानी पुण्य इकट्ठे करना और किसी भी जीव के बारे में बुरा सोचना या अपने व्यक्तिगत सुख के लिए बुरा करना मतलब पाप कर्म करना इसलिए पाप और पुण्य फलों को भोगने के लिए हमें बार-बार धरती पर जन्म देना पड़ता है । पुण्य फलों के फलस्वरुप हमें अच्छी योनी मिलती है। हम भौतिक सुखों का भोग करते हैं और पाप कर्मों के फलस्वरुप हमें जीवन में अनेकों दुख मिलते हैं।
लेकिन पुण्य कर्मों और अच्छाई का अहंकार हमें बंधन में बांध देता है। जब हम भक्ति मार्ग पर बढ़ते हैं तो हम हर कर्म भगवान की खुशी के लिए करते हैं और भगवान की खुशी के लिए किया गया हर कर्म निष्काम कर्म बनता है और यही निष्काम कर , दिव्य कर्म कहलाता है अगर हम जीवन मरण के चक्कर से छुटकारा पाना चाहते है तो हमें अपना हर कार्य प्रभु की याद में, प्रभु को समर्पित करते हुए करना चाहिए इस प्रकार किए गए दिव्य कर्मों से और प्रभु श्री हरि की कृपा से हम परमपिता परमात्मा के घर वापस जा सकते हैं ।
अच्छाई के मार्ग पर चलना अच्छी बात है लेकिन सोने पर सुहागा तब होता है जब हम अच्छे कर्म भक्ति भाव से करते हुए दिव्यता की ओर बढ़ते हैं ।
इसलिए यह अवधारणा कि अच्छे कर्म ही काफी है, गलत है
अगर आप भी घर बैठे बैठे भक्ति के मार्ग में जुड़ी इन गलत अवधारणाओं से अवगत होना चाहते हैं तो इस नंबर पर सम्पर्क करे
7018026821
तथा अपने वक्त और सुविधा अनुसार घर बैठे बैठे श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करें
गोलोक एक्सप्रेस में आइए दुख दर्द भूल जाइए एबीसीडी की भक्ति में लीन होकर नित्य आनंद पाइए ।
https://youtu.be/fb1ctnufCIg