*पाठकों के लेख :लेखक पूर्व मंत्री महेंद्र नाथ सोफ़त*
13 मई 2022– (#देशद्रोह_कानून_पर_सुप्रीम_कोर्ट_की_अस्थाई_रोक)–
मै कानून का जानकार नहीं हूँ, इसलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा देशद्रोह पर लगाई गई अस्थाई रोक की समीक्षा नहीं कर सकता। यह रोक कितनी कानून सम्मत और संविधान सम्मत है इस पर विवेचनात्मक टिप्पणी देश के कानूनविद करें तो बेहतर होगा। देशद्रोह के कानून का दुरुपयोग हो रहा है। इस आरोप और प्रार्थना के साथ कि यह कानून रद्द होना चाहिए याचिका सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन थी। तीन सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की पीठ के सामने यह दलील पेश की गई थी कि इस कानून की वैधता को पांच सदस्यीय पीठ पहले ही अनुमोदित कर चुकी है। इसलिए इस मामले की सुनवाई 7 सदस्यीय पीठ के सामने होनी चाहिए। इसी बीच सरकार ने अदालत को बताया की सरकार इस कानून की समीक्षा करने के लिए तैयार है। अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आई पी सी की धारा 124 ए के प्रावधानों की समीक्षा की अनुमति देते हुए फिलहाल देशद्रोह के कानून पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र व राज्य सरकारें देशद्रोह कानून की आई पी सी धारा 124 ए मे कोई केस दर्ज न करें और न ही इसमे कोई जांच करें। इस रोक से एक बात तो स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून के पक्ष मे नहीं है।
कोर्ट ने फिलहाल गेंद सरकार के पाले मे डाल दी है। उधर केंद्रीय विधि मंत्री किरन रिजिजू का यह ब्यान कि किसी को भी “लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए”। यह आभास दे रहा है कि वह इस रोक को विधायिका पर अदालत का अतिक्रमण मान रहे है। मेरे विचार मे उन्हे ऐसा सोचने की जरूरत नहीं है क्योंकि पुराने कानूनों की समीक्षा एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए। समय के साथ कुछ पुराने कानून रद्द करने की जरूरत हो सकती है और उनकी जगह समय की जरूरत के अनुसार नये कानून बनाए जा सकते है। क्योंकि जैसे समाज का दृष्टिकोण बदलता है उसी के अनुसार कानून बदलने की जरूरत रहती है। वर्तमान केंद्रीय सरकार का पुराने कानूनों की समीक्षा करने और उन्हे रद्द करने का बेहतरीन रिकॉर्ड है। सरकार को चाहिए की वह आई पी सी की धारा 124 ए की शीघ्र अति शीघ्र समीक्षा कर इस कानून पर अतिंम निर्णय ले कोर्ट को अवगत करवा दें।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।