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*”जीवन की दशा, दिशा और गुणवत्ता”*लेखिका रेणु शर्मा*

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तुम्हारे जीवन की दशा, दिशा और गुणवत्ता का निर्धारण इसी बात से किया जा सकता है कि तुम किन चीज़ों से आसक्त होते हो, किन चीजों से मोहित होते हो, किन बातों और हालातों से ख़ुद को विरक्त करते हो, किन स्थितियों से ख़ुद को तनावग्रस्त स्थिति में पहुंचाते हो।अपने जीवन के संघर्ष का किस्सा सुनाते समय एक वीर योद्धा की तरह स्वयं को साहसी, निर्भीक, निडर और गौरवांवित महसूस करना चाहिए,न कि लाचार, शोषित, वंचित, असहाय और शोकग्रस्त व्यक्ति की तरह ख़ुद को आत्मग्लानि, अपराधबोध या बेचारगी के भाव से पीड़ित करना चाहिए, समाज में ख़ुद को सहानुभूति के पात्र बनाने से बचिए..”क्योंकि समाज की दशा और दिशा केवल आपके “मज़बूती” से बदलती है न कि तुम्हारी”कमजोरी” से..”यदि समाज की बुराइयों को केंद्र में रखकर तुम अपनी ज़िंदगी को देखोगे, तो तुम्हें अपनी ज़िंदगी शोषित, पीड़ित, असहाय, दयनीय और निकृष्ट सी लगने लगेगी. खुद पर तरस आएगा. ऐसा लगेगा जैसे कि तुम एकमात्र इस पृथ्वी के ऐसे इंसान हो जिसके साथ दुनियावालों ने छल, कपट और बेईमानी की है. जिसे बहुत दर्द दिया है, हमेशा लूटा है. मानसिक शारीरिक आहत पहुंचाया है, जीवन मे सफ़ल होने के सारे मार्ग ही तहस नहस कर दिए, जीवन को गर्त में पहुंचा दिया है.लेकिन इसके विपरीत यदि तुम स्वयं के अच्छाई को केंद्र में रखकर इस समाज और दुनिया को देखोगे, तो तुम्हें यह सृष्टि सुखद लगेगी, क्योंकि अब तुमने स्वयं को केंद्र में रखा है. तुम्हें हमेशा ख़ुद से ही प्रेरणा मिलती रहेगी, कि तुम इस दुनिया को अपने क्रियाकलापों के माध्यम से और कितना खूबसूरत बना सकते हो, अपने अच्छाई के रंग से इसे और कितना रंगीन कर सकते हो।

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