पाठकों के लेख एवं विचार
*#सरकारी_अफसरों_की_कॉलोनी, लेखक:हेमांशु मिश्रा*

#सरकारी_अफसरों_की_कॉलोनी
#हेमांशु #मिश्रा

सरकारी अफसरों की कॉलोनी के
बाहर कतार में खड़ी है
मकानों से ज्यादा गाड़ियां
एक दूसरे से बिल्कुल अनजान
पूछ रही हो एक दूसरे की पहचान
सुबह के सात बजे तक
सब शांत हैं
अपने अपने मकान की
चारदीवारी में कैद
बच्चों के स्कूल की
तैयारी में मशगूल
चुन्नू के होम वर्क,
बिटिया के टिफन
बनाने में तल्लीन
समय है कि तेजी से दौड़ रहा है
वहीं दूध की गाड़ी के हॉर्न से
कॉलोनी में हलचल सी दिखती है
सुबह की राम राम
आफिस की जल्दी
हड़बड़ाहट में दिखती है
सवा सात बजे गए हैं
बच्चे तैयार है
बस की इंतज़ार में
अर्नव खुशकिस्मत है
आज पापा की गाड़ी में कोचिंग जाएगा
स्कूल बस आ गयी है
चुन्नू का बैग कौन लाएगा
शर्मा जी का बेटा खुद गाड़ी चला
आत्मनिर्भर बन स्कूल जाएगा ।
सरकारी अफसरों की कॉलोनी में
गाड़ियां एक एक कर छंटनी लगी है
हल्की मुस्कान लिये
जान पहचान बढ़नी लगी है।
यहां अब सुबह भी
चमकने लगी है
दफ्तर जाने की तैयारी में
जल्दी निकलने की होड़ सी लगी है
जिंदगी की आपाधापी में
सरकारी कॉलोनी में
अलग रंग पाया है
एक नया अनुभव
आज सुबह ही आया है ।
