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*पाठकों के लेख एवं रचनायें: एक सुंदर रचना ,लेखक :संजीव गांधी आईपीएस*

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कुछ तो भिन्न है

कुछ तो है भिन्न
चिड़िया और गिलहरी मे
कुछ तो है भिन्न
इन वनस्पतियों मे
आम और देवदार की पतियों मे
कुछ तो है भिन्न-भिन्न
इन पत्थरों मे, पहाड़ मे
नदी की कल कल मे
शेर की दहाड़ मे
बहुत कुछ है भिन्न
चूल्हे पर पकती रोटी-दाल मे
पकते आमो के बाग मे
उल्लास भरे गीत-संगीत मे
और जंगलो की दहकती आग मे
भिन्न तो है कुछ समय की धार मे
नाव मे पतवार मे
खारे समुद्र मे समाती मीठे पानी की धार मे
कितनी भिन्नताओं को खोजें
संसार मे—???
फिर भी—
कुछ तो है, सब मे जो एक है
प्राण है, सांस मे त्राण है
भूख और पीड़ा मे
करूणा से भरी आस है
बंटते कटते घाव है
दया के भाव है
सत की जीत है
अहिंसा मे प्रीत है
क्षमा का विशुद्ध रूप है
सभी के भीतर एक ही परमात्म स्वरूप है
बस
उसके नाम अनेक है !!!!
संजीव गांधी IPS

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