*पाठकों के लेख:#सैर_के_दीवाने #हेमांशु #मिश्रा*
#सैर_के_दीवाने
#हेमांशु #मिश्रा
बात आई जब सैर की
वो उठे और
दबे पांव निकल गए
उनके कदमो में गजब की ठसक थी
उनके पैरों में एक अलग सी कसक थी
उनकी आहट में खामोशी थी
उनकी चाल में भी मदहोशी थी
वजन की नजाकत से वाकिफ थे वो
एक लड्डू भी
तौल कर खाते थे वो
ट्रेड मिल के साथ
उनकी दोस्ती पुरानी थी
सुबह शाम उनकी यही कहानी थी
सुबह सवेरे उनसे मिलना
अच्छा सा लगता है
उनकी मीठी वाणी में
राम राम
कैसे हो
ठीक हो
सुने बिना
कुछ अधूरा सा लगता है
बरसात के मौसम में
कभी सुबह तो कभी शाम मिलते है
लेकिन धुन के पक्के
सैर पर रोज निकलते हैं
कल शाम की ही बात थी
चलते फिरते
टहलते घूमते
उनका नया रूप देखने को मिला
रूस यूक्रेन श्रीलंका के आगे
जर्मनी जापान को लेकर
उनका ज्ञान समझने को मिला
सैर भी खूब है
चलते तीन चार किलोमीटर है
सफर दुनिया का कर लेते हैं
उनकी देखादेखी में
मेरे मुहल्ले में भी क्रांति आयी है
बच्चे बड़े सब सुबह सैर पर हर रोज़ निकलते है
सूद साहिब ने अब नई सायकल निकाली है
कटोच जी ने सिम्बा के साथ जिम्मेदारी निभानी है
बंटा जी भी धुन के पक्के है
फिन्नु भाई तो रोज सपत्नीक मिलते है
अशोक जी लेखक हैं
शाम की सैर के बाद क्राइम रिपोर्ट लिखते है
लेकिन वो है
जो अपने आप खुद सैर का काव्य रचते है
अपने कदमों से नित नए वांगमय गढ़ते है
उनको केवल घुमक्कड़ कहना बेमानी है
सैर के सिपाही पुरोधा पुजारी प्रेरणा है
असल मे वो सैर के दीवाने मतवाले है
बात आई जब सैर की
वो उठे और
दबे पांव निकल गए