राजमाश के लिए जीआई प्राप्त करेगा विश्वविद्यालय: कुलपति, प्रो.एच.के.चौधरी
प्रदेश में राजमाश की 368 स्थानीय किस्मों को पहचाना है विश्वविद्यालय ने
पालमपुर, 4 अगस्त। चौसकु हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने निर्णय किया है कि निकट भविष्य में हिमाचली राजमाश के लिए भौगोलिक सूचंकाक (जीआई )प्राप्त करेगा। कुलपति प्रो.एच.के.चौधरी ने यह खुलासा किया है। प्रो.चौधरी जाने-माने गुणसूत्र इंजीनियर और आणविक प्रजनक है जिन्होंने त्रिलोकी राजमाश समेत 20 विभिन्न फसलों को विकसित करने में अपना योगदान दिया है। कुलपति ने कहा कि उन्होंने प्रदेश के कुकमसेरी (लाहौल -स्पीति ), किन्नौर, कुल्लू, मंडी और चंबा जिलों के दुर्गम जनजातीय क्षेत्रों में राजमाश की 368 स्थानीय किस्मों को ढूंढा है। प्रदेश में यह क्षेत्र राजमाश की खेती के लिए प्रमुख तौर पर जाने जाते है। उन्होंने बताया कि राजमाश को एकत्र करने के बाद उन्होंने इनकी विशिष्टता,मूल्यांकन,शोधन के बाद ख्याति प्राप्त वैराईटी त्रिलोकी राजमाश को प्रजनन शुद्वता को ध्यान में रखते हुए विकसित किया। हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी एवम पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट) शिमला के साथ मिलकर विश्वविद्यालय राजमाश के भौगोलिक सूंचकाक के लिए प्रयास कर रहा है। इससे राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता मिलेगी और राजमाश की विविधता के लिए इसकी अलग कीमत निर्धारित होने से राजमाश तैयार करने वाले किसानों को इससे लाभ मिलेगा। प्रो चौधरी ने खुलासा किया कि विश्वविद्यालय नए शोध के माध्यम से हिमालयी क्षेत्र में जलवायु के लचीलेपन का लाभ लेते हुए इसकी गुणवत्ता में सुधार करते हुए विशेष प्रयासों को कर रहा है।
कुलपति जी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश अपनी भौगोलिक परिस्थितियों के लिए विख्यात है। यहां पर एक तरफ ठंडा शुष्क रेगिस्तान है तो दूसरी तरफ विभिन्न क्षेत्र है जो राजमाश को लेकर अन्य राज्यों से अलग है। यहां के किसानों को इसकी भौगोलिकता का लाभ मिलता है। उन्होंने बताया कि राजमाश की त्रिलोकी किस्म शुष्क ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के लिए है। इसका बड़ा और हल्का पीला बीज है जो पकाने में बढ़िया, जैविक स्वाद से भरपूर, बैक्ट्रीरियल ब्लाईट जैसी बीमारी से मुक्त और औसतन प्रति हैक्टयेयर 20 से 22 क्विंटल पैदावार रहती है।
इसे राजमाश की अन्य किस्मों से 10 से 20 दिन पहले लगाया जाता है। हल्के पीले राजमाश को हिमाचल के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों द्वारा प्रमुखता से लगाया जाता है क्योंकि खाने में यह स्वाद व पौष्टिक होते है। कार्बोहाइड्रेट,फाईबर , एंटी ओक्सीडेंट युक्त हल्के पीले राजमाश में कीटाणुओं से लड़ने का गुण होता है। इसके साथ ही इसमें विटामिन बी छह ;बी सिक्स द्ध, विमामिन सी,खनिज तत्व पोटाशियम, जिंक,मैग्नीशियम, कैल्शियम,आयरन आदि तत्व होते है। यह रक्त चाप को नियंत्रित करने में सहायक और इम्युन सिस्टम को मजबूत रखते है। लाल राजमा की तुलना में पीले रंग के राजमाश में हानिकारक तत्व फाइटोहेमाग्लुटिन कम मात्रा में पाया जाता है जो पेट की कई बीमारियों जैसे पेचिश, पेट दर्द, अपच आदि को रोकता है। कुलपति जी ने बताया कि यह वैराइटी किसानों में काफी लोकप्रिय है। इसे तैयार करने में प्रोत्साहन देने और ब्राडिंग और पैकजिंग में विश्वविद्यालय मदद करेगा।