पाठकों के लेख एवं विचार

*तलवे* लेखक विनोद वत्स

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तलवे (व्यंग)

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तलवे चाटने में हम भईया हो गये तलवे बाज़।
जो जितने तलवे चाटेगा उतना वो करेगा राज़।

धर्म देश प्यारा नही, हम तलवे चाटने वालो को।
धन मिल जाये हमको, बेच दे घर दरवाज़ों को।
हमरी बस इक इच्छा, कैसे बढ़े तलवा समाज।
तलवा चाटने में, हम भईया, हो गये तलवे बाज़।

हमरी रगों में खून है सुनलो जयचंदी राजाओं का
बड़ा मजाआता है तलवा चाटने में आकाओं का।
जब ये पुचकारते हमको हम हो जाते बेआवाज़।तलवे चाटने में हम भईया हो गये तलवे बाज़।

तलवे चाटने में सुन लो हम है कट्टर खानदानी।
हमरे दादा ब्याह कर लाये थे एक विदेशी रानी।
ददा गूंगे हो और रानी की रुकी नही आवाज़।
तलवे चाटने में हम भईया हो गये तलवे बाज़।
विनोद शर्मा वत्स

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