*चुनाव_आयुक्तों_की_नियुक्ति_को_लेकर_सुप्रीम_कोर्ट_का_ऐतिहासिक_फैसला* *MN SOFAT Ex Minister*
04 मार्च 2023- (#चुनाव_आयुक्तों_की_नियुक्ति_को_लेकर_सुप्रीम_कोर्ट_का_ऐतिहासिक_फैसला)-
लोकतंत्र मे स्वतंत्र चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है और स्वतंत्र चुनाव करवाने की जिम्मेदारी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की है। इनकी स्वतंत्रता को लेकर लगातार प्रश्न उठते रहे है। मेरी समझ मे इन प्रश्नों के लिए चुनाव आयोग का अपना व्यवहार जिम्मेदार है। एक जैसे विभिन्न मामलो मे अलग-अलग निर्णय, अलग-अलग समय सारणी या अलग-अलग प्रक्रिया अपनाने से प्रश्नों का खड़ा होना स्वभाविक है। जैसे अभी हाल ही में महाराष्ट्र की शिवसेना की मान्यता और चुनाव चिन्ह को लेकर चुनाव आयोग ने फैसला सुना दिया, जबकि लोक जनशक्ति पार्टी की मान्यता और चुनाव चिन्ह के विवाद का फैसला वर्षों से लम्बित है। चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से भी जोड़कर देखा जाता है। 73 वर्षों से सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करती आ रही है। आम धारणा है कि सरकार अपने विश्वासपात्रों को ही चुनाव आयुक्त नियुक्त करती है।
अभी हाल ही मे पंजाब काडर के आई ए एस अधिकारी अरूण गोयल को जिस जल्दबाजी और स्पीड से बतौर चुनाव आयुक्त नियुक्ति दी गई उस पर खूब हो हल्ला हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा। नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती दी गई। हालांकि इसी नियुक्ति प्रक्रिया से टी एन शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त भी देश को मिले है जिन्होने बहुत चुनाव सुधार किए है, लेकिन वह अपवाद की श्रेणी मे आते है। खैर चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों को लेकर विचाराधीन याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ जिसका नेतृत्व जस्टिस के एम जोसेफ कर रहे थे ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आदेश दिया है कि अब चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियां सी बी आई के डायरेक्टर की तर्ज पर हो। कोर्ट का फैसला है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन पी.एम, नेता विपक्ष और चीफ जस्टिस का पैनल करेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय निश्चित तौर पर स्वागत योग्य है। कोर्ट ने अपने आदेश मे स्पष्ट किया है यह आदेश संसद द्वारा इस आशय का कानून बनाने तक लागू रहेगा। उम्मीद की जानी चाहिए इस फैसले के बाद चुनाव आयोग पूरी स्वतंत्रता और स्वायत्तता के साथ काम करेगा।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।