*किरेन_रिजिजू_से_छीना_गया_कानून मंत्रालय)-*
20 मई 2023- (#किरेन_रिजिजू_से_छीना_गया_कानून मंत्रालय)-
किरेन रिजिजू से कानून मंत्रालय लेकर कम महत्वपूर्ण पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय देना सामान्य परिवर्तन नहीं है। असल मे किरेन रिजिजू के सर्वोच्च न्यायालय और न्यायपालिका पर दिए गए ब्यान केन्द्रीय सरकार को असहज कर रहे थे। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी टिप्पणियों का संज्ञान लेते हुए उन्हे कोर्ट और कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ टिप्पणी करने से बचने की सलाह दी थी। कुल मिला कर बतौर कानूनमंत्री रिजिजू की कार्यप्रणाली सरकार और न्यायपालिका मे शीतयुद्ध का सन्देश दे रही थी। यह बात तो सही है कि वर्तमान केंद्रीय सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच मधुर संबंध नहीं है। इसलिए पहले विश्लेषकों का मानना था कि तत्कालीन कानून मंत्री के बयानों पर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की चुप्पी उन दोनो की कानूनमंत्री से सहमती हो सकती है, परन्तु मेरी समझ मे बड़बोले रिजिजू की रिटायर्ड जजों पर की गई टिप्पणी भारी पड़ गई और उनको महत्वपूर्ण मंत्रालय गंवाना पड़ा।
स्मरण रहे रिजिजू ने एक निजी चैनल के कानक्लेव मे कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों पर प्रश्न उठाते हुए कहा था कि रिटायर्ड जज और एक्टिविस्ट भारत विरोधी गिरोह का हिस्सा बनकर कोशिश कर रहे है कि भारतीय न्यायपालिका विपक्ष की भूमिका निभाए। इतना ही नहीं उन्होने इस कानक्लेव मे कॉलेजियम प्रणाली की भी जमकर आलोचना की थी। जहां तक तो न्ययापालिका और कार्यपालिका मे शीतयुद्ध की बात है वह एक स्वीकार्य सच्चाई है क्योंकि सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज है और सबसे अधिक मुकदमो मे वह वादी या प्रतिवादी है। इसलिए कार्यपालिका और न्यायपलिका के संबंध बहुत संवेदनशील माने जाते है और इनमे सामंजस्य बनाना अति जरूरी है। इसको बनाने की जिम्मेदारी कानूनमंत्री की होती है। कानूनमंत्री का परिपक्व होना और उन्हे एक-एक शब्द सोच समझ कर बोलना अति आवश्यक है। रिजिजू के बड़बोलेपन से यह शीतयुद्ध टकराव मे बदल सकता था और टकराव देश हित मे नहीं था। इसलिए प्रधानमंत्री ने एक्शन लेते हुए रिजिजू से कानून मंत्रालय लेकर राजस्थान के अर्जुन राम मेघवाल को दे दिया है। यह वर्ष राजनैतिक तौर पर अति संवेदनशील वर्ष है आने वाले 2024 मे लोकसभा के चुनाव होने है। निकट भविष्य मे कई महत्वपूर्ण मामलो की सुनवाई भी सुप्रीम कोर्ट मे होनी है। ऐसी स्थिति मे सरकार चाहती है कि सर्वोच्च न्यायालय से सौहार्दपूर्ण संबंध भले न हो लेकिन कम से कम टकराव तो नहीं होना चाहिए और न ही टकराव का सन्देश जाना चाहिए।
#आज_इतना_ही कल फिर नई कड़ी के साथ मिलते है।