*कानून और न्यायव्यवस्था* उमेश बाली



कानून और न्यायव्यवस्था
एक उदाहरण देखिए किसी बात पर सड़क पर किसी ड्राइवर से कोई मामूली सी गलती हो जाती है , कुछ लोग इक्कठे होते हैं और ड्राइवर की पिटाई कर देते हैं या जान से मार डालते हैं । दुसरा उदाहरण आप किसी बस में सफर कर रहे हैं किसी बात पर बहस हो जाती है किसी से भीं अगर आप कमजोर है तो आप को गाली ग्लोच के साथ थप्पड़ भी खाना पड़ सकता है । तीसरा उदाहरण कोई बहन बेटी सड़क पर जा रहीं कोई फबती कस देता है आप बहन बेटी के सम्मान के लिए आगे आते हैं आप पर चालू से हमला हो जाता है या तेजाब फैंका जा सकता है । इस कदर बेखौफ होते हैं अपराधी किस्म के लोग । अब एक बानगी देखिए एक
बावा पर हत्या के केस में सजा होती है और डर के मारे सरकार गरिफ्तार नही करती , अदालत दखल देती है तब जा कर हंगामे और हिंसा के बीच प्रशासन हरकत में आता है और उसे कानून के हवाले करता है । हर रोज बच्चे अगवा होते हैं कोई पता नहीं कहां चले जाते हैं । हर घंटे महिला के सम्मान पर चोट पहुंचती लेकिन अपराधी बच निकलते हैं । किसी भी अपराध के लिय सजा मिलने में बरसों लगते हैं । किसी भी अपराध के लिय fir दर्ज करवाने के लिए आपको अदालत जाना पड़ सकता है, हो सकता है अपराधी जमानत पर छूटने के बाद आप या आपके परिवार पर कयामत ढा दे । यह रोज की बात है । आप पर किस धार्मिक स्थल के बाहर आपके अपने ही बेरहम हो जाएं यह भी पता नहीं दूसरे वर्ग के हो जाएं यह भी ख़बर नहीं । यहां कानून का शासन ही नही है , प्रभावी प्रशासन व्यवस्था ही नही । कब कहां कोन सी भीड़ हिंसक हो जाए कोई सतर्कता नही । कानून प्रभावी न होने के साथ साथ न्यायव्यवस्था पूरी तरह पंगु हो जाती है । 21वी सदी में दो महिलाओ को भीड़ नंगा घुमा देती हैं लेकिन कानून पंगु हो कर देखता रहता है क्योंकि एक वर्ग को तुष्ट करना होता है। ऐसे ही उदाहरण या मिलते जुलते आपको हर राज्य में मिल जायेंगे । लेकिन न तो संसद न सांसद कोई भी एक मत हो कर कानून व्यवस्था को सही करने में दिलचस्पी नहीं दिखाती अपितु राजनीति करती है । यही बेखौफ अपराध की जड़ है कयोंकि कानून नेताओं का गुलाम है । यह सबकुछ राजनीति तय करती है कब एफआईआर होनी है , कब जांच होनी है कब अरेस्ट करना है । बेखौफ अपराधी आपको समानांतर प्रशासन चलाते मिल जायेंगे । किसका कत्ल करना है , किसका कब्जा छुड़ाना है , किसको कब्जा दिलवाना है , कहां अवैध खनन करवाना है पैसा फेंकिए और कुछ भी करवा लीजिए । अब न्याय व्यवस्था , पहले चार्जशीट में समय , फिर केस शुरू होने में फिर कम से कम तीन साल निचली अदालत में , उसके बाद अगर न्याय नहीं मिला और आपके पास पैसा है तो इतना ही समय उच्च न्यायलय में , फिर सर्वोच्च न्यायलय मर भी जाए तब भी जरूरी नही न्याय मिल जाए । दलीलों और वकीलों का खेल चलता रहेगा । लेकिन देश किस झंझावात में फंसा है , धर्म मे और वीआईपी संस्कृती में। अब यह वीआईपी संस्कृति मंदिरों में भी प्रवेश कर गई पैसा खर्च कीजिए और बारी से पहले दर्शन कीजीए कम से कम चिंतपूर्णी माता के दरबार में लागू हो गया , पहले रिश्वत के दम पर होता था अब खुल्लम खुल्ला । अब आप पाठक गण खुद ही तय कीजिए न्याय कहां से मिलेगा जहां मंदिर भी दुकानों में तब्दील होने लगे हैं । लेकिन हमारे हाथ में पकड़ा दिया गया है नफरतों का झुनझुना । किसी वर्ग को कानून या न्याय की चिंता नही , शिक्षा , स्वास्थ्य की चिंता नही , घरों में दम तोड़ते मजबूर लोगो की चिंता नही लेकिन धर्म खतरे में आ चुका है । याद रखिए सुविधा की राजनीति कानून और न्याय व्यवस्था को इतना पंगु कर देगी कि नूह तो छोटी घटना हैं लेकिन अगर यही हालात रहे तो हिंसा का बहुत बडा तांडव होगा और सारी की सारी तरक्की धरी की धरी रह जाएगी । सावधान रहिए , सुरक्षित रहिए ।

उबाली ।