उपरोक्त टिप्पणी देश की सबसे बड़ी अदालत ने महाराष्ट्र राजनैतिक संकट पर याचिका मे संविधान की व्याख्या करते हुए की है। सुनवाई के दौरान नई सरकार के गठन के समय तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोशयारी द्वारा की गई टिप्पणी की ओर जब अदालत का ध्यान आकर्षित किया गया तो कोर्ट ने सटीक कमेंट करते हुए कहा कि राज्यपाल के पद पर आसीन व्यक्ति को राजनीति मे घुसने से संकोच करना चाहिए। स्मरण रहे कोश्यारी ने हाल ही मे अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। हालांकि औपचारिक तौर पर उन्होने त्यागपत्र का कारण व्यक्तिगत बताया है लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उनसे त्यागपत्र देने के लिए कहा गया था। काबिले गौर है कि कोशयारी अपने कार्यकाल मे अपने ब्यानों के चलते विवादों मे ही बने रहे थे। निश्चित तौर पर राज्यपाल का पद अति गरिमा पूर्ण है। संविधान निर्माताओं को आशा थी कि प्रख्यात व्यक्तियों को विशेषकर उन लोगो को जो सक्रिय राजनीति मे शामिल नहीं हो उन्हे राज्यपाल नियुक्त किया जाएगा, लेकिन अब बहुमत लोग सक्रिय राजनीति से आते है।
पिछले कुछ समय से राज्यपालों और चुनी हुई सरकार मे टकराव की खबरें आना आम बात है। इस टकराव के चलते राज्यपाल के पद की गरिमा कम हुई है यह सच्चाई है। मेरी समझ मे राज्यपाल प्रदेश का सवैधांनिक मुखिया के साथ केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है लेकिन कठिनाई तब शुरू होती है जब राज्यपाल अपने को केंद्र मे सत्तारूढ़ पार्टी का प्रतिनिधि समझ कर काम करता है। अब समय आ गया है कि राज्यपाल पद की पुरानी गरिमा को बहाल किया जाए क्योंकि उसे देश की एकता सुनिश्चित करने तथा राज्य की जनता के कल्याण की विशिष्ट भूमिका दी गई है। उम्मीद करनी चाहिए कि मुख्यन्यायाधीश के नेतृत्व मे बनी सुप्रीम कोर्ट की सविधांन पीठ की सलाह पर गौर करते हुए सभी राज्यपालों को इस बात को ध्यान मे रखना होगा कि लोकतंत्र का तात्पर्य संविधान का सम्मान करना और स्थापित परिपाटियों का पालन करना है।