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*एक दौर था मेरा नाम फिएट था ओर इतनी हसीं थी*
यह ट्राई सिटी टाइम्स के प्रबुद्ध लेखक उमेश बाली के उदगार हैं
मेरे खंडहर हो गए , बदन को न देख ,
एक दौर था मेरा नाम फिएट था ओर इतनी हसीं थी ,
कभी घरों के प्रांगण में मै सजी थी ,
मेरी चमचमाती रंगत पर लोग , हाथ से छूने की तमन्ना करते थे ,
मेरी सवारी की लोग ख्वाइश किया करते थे ,
कभी मुझ में बैठने वाले भी सजे थे ,
जिस प्रांगण में मै खड़ी होती ,
उस घर की एक अलग शान थी ,
मैं और निखरी, नए श्रृंगार में मेरा नाम पद्मनी हो गया था ,
जब सड़क पर थम से मैं निकली ,
मुझे पाने में जमाना दीवाना हो गया था ,
मेरे आज खंडहर हो गए बदन को न देख ,
मैं अपने समय में अज़ीम थी