पाठकों के लेख एवं विचार

*पाठकों के लेख :-कमलेश सूद पूर्व प्राध्यापक सेंट्रल स्कूल पालमपुर*

एक शोध

Bksood chief editor tct

अँग दान महादान
हम अमर हो सकते है़ …

हम अमर हो सकते है़
मजाक सा लग रहा है़ ना ..जब तक मुझे भी जानकारी नहीं थी मुझे भी य़े बात मजाक सी ही लगती थी
आप और हम सब सुनते आये है प्राचीन काल में बड़े बड़े ऋषि मुनी देवीं देवता सदा प्रयास रत रहते थे कैसे भी वो अमरत्व प्राप्त कर ले।उसके लिये भीषण जंगलो, कंदराओं, हिम शिखरों पर जाकर सालों साल घोर तपस्या करते पर अमरत्व प्राप्त नहीं कर पाते ।
पर हमारा सौभाग्य आज विज्ञान की अदभुत तरक्की और टेक्नीक द्वारा अमरत्व सभी को प्राप्त हो सकता है ।है ना हैरानी क़ी बात पर ये सत्य ही है मजाक नहीं।
जरा सोचो जानवर मरते है तो उनके मृत शरीर का हर हिस्सा काम आ जाता है ।व्यर्थ नहीं जाता और हम मनुष्य मरने के बाद जानवर से भी गये बीते हो गये है ।मरने के बाद सिर्फ जला दिये जाते है और इतिश्री हो गई।
उफ़ कैसा दुर्भाग्य हमारा बुद्धिमान, विद्वान , डाक्टर इंजीनियर वैज्ञानिक जाने क्या क्या रुतबा पाकर भी हमारे शरीर की मरणोपरांत जानवर जितनी भी उपयोगिता नहीं रहती। सिर्फ जल कर राख़ हो जाना ही हमारी नियति है ।
पर अब समझो हम जानवरो से श्रेष्ठ है उसे साबित करने का
प्रयास करना होगा ।
प्रयास का नाम है ….
🌷अंग दान, 🌷
उत्तम और सृजनात्मक कार्य

आइये इस बात को कुछ इस प्रकार समझऩे का प्रयास करते है़ ।सरकारी, प्राइवेट अस्पताल और कुछ समाज सेवी संस्थाये देहदान अंग दान के फार्म भरवाती है जिसमें आपके परिवार की ,बच्चों की रजामंदी के साथ ये लिखा होता है ..और हस्ताक्षर करवाये जाते है कि जब भी आपकी मृत्यु होगी आपके परिजन फॉर्म में दिये गये अस्पताल को तुरंत खबर करेगे की उक्त व्यक्ति की मृत्यु हों गई है़ और इसने अंग या देह दान कर रखा है
क्यो की मरने क़े बाद जैसे जैसे समय बीतता जाता है़ मृतक का अंग नष्ट होता जाता है़ । फिर अंग लेने का फायदा नही होता और ना किसी जरूरत मन्द के लगाया जा सकता है़।
नेत्र दान क़े लिये टीम घर आती है़ बाकी अंग अस्पताल जाकर निकाले जाते है़ ।ये तो हुईं अँग दान की एक प्रक्रिया।
अब हम आगे क़ी प्रक्रिया की ओर चलते है़ अंग निकाल कर डाक्टर लोग क्या करते है जिससे अमरत्व प्राप्त हो जाता है
तो मित्रो एक मृतक के शरीर से निकले अंग, 9 जरूरत मन्द लोगो को अँग दे सकते है । जरा सोचिये ऐसा मृत शरीर जो जल कर राख़ में तब्दील हो जाता है वो नो लोगो को नव जीवन दे जाये तो मर कर भी आप अमर हुये ना ।
जरा सोचे हम अपनी आँखें मरणोपरांत किसी को दान कर जाते है या हाथ दान कर जाते है तो वो अंधा व्यक्ति आपकी आँखों से ये दुनियां देख रहा है़ आपके द्वारा दिये हाथों से जीवन यापन और काम कर पा रहा है़ ।केवल ऐसा सोच के देखिये आपका मन कैसा सुकून और गर्व से भर उठता है़।औरसाथ में परिजनो का भी ।
और आपका नश्वर शरीर अमरता को प्राप्त हो जाता है़ ।
अब आते है़ धर्म की बात पर तो साहब हमारे सनातन धर्म में दान का क्या महत्व बताया गया है़ इसकी व्याख्या करना व्यर्थ है़ आप सभी दान का महत्व भली भांति जानते है़ ।
कौन बनेगा करोड़पति में हर शुक्रवार आने वाले कर्म वीर क़े एक एपिसोड में दिखाया गया था ।महज 19 साल की लड़की के दौनो हाथ कोहनी तक ट्रेन दुर्घटना में कट गये थे किसी अंग दान दाता के कारण उसे दौनो हाथ मिल गये और अब वो इंजियरिंग की पढ़ाई कर रही है़ ।उसके घर में उस अंगदान दाता का फोटो भगवान क़े मन्दिर में रखा है़ ।उस बच्ची ऩे तब
नेशनल tv पर कहा था में स्वंय भी ये प्रण लेती हू मरणोपरांत मेरे अंग भी जरूरत मन्दो को लगा दिये जाये। यानी अँग दान का प्रण लिया और फॉर्म भरा ।
एक मिनट जरा सोचिये उस लड़की के हाथ तो किसी अन्य क़े द्वारा उसे दिये गये है़ उसके मरने कें बाद वही हाथ किसी अन्य क़ो लगेगे ….यानी वो व्यक्ति उस लड़की की जिन्दगी के बाद भी किसी अन्य के काम आयेगा सोच कर ही मन कैसा आत्म तुष्टि से भर उठता है़ ।अपनी जिन्दगी दान दिये हुये व्यक्ति की जिन्दगी यदि वो भी आगे दान कर दे तो उस अन्य व्यक्ति की जिन्दगी फिर ..अमरत्व की इससे अधिक
सुन्दर,सरल और सकरात्मक व्याख्या क्या होगी ….बस विज्ञान की तरक्की ने अमरत्व क़ी जो राह खोली है़।इसका भरपूर फायदा उठाये मनुष्य है़ मनुष्यत्वता का पालन करते हुये जीवन यापन करें।
जानती हू परिजनो को सामाजिक परंपराओं क़ो समझाना, बदलना मुश्किल है़ पर असम्भव नहीं ..
अपने बाल्य काल यानी तकरीबन 30 साल पुरानी घटना याद हो आईं।
मेरे पिता के मित्र आदरणीय पारिख साहब काफी बुजुर्ग थे और थोड़ा सनकी भी बाबूजी कें पास आकर घण्टों बैठे रहते उन्हे आजादी से पहले अंग्रेजो द्वारा पाँव में सोने का कड़ा पहना कर लाट साहब की उपाधी से नवाजा गया था ।उनके पास एक घोडा था उस पर रोज सुबह सवारी करते और हमेशा हैट पहनते थे। सभी हँसते बेबी दीदी उनकी बेटी और दो और बेटियाँ और बाबू भय्या उनका सी .ए बेटा सदा उनसे नाराज रहते वो अपनी हरकतों से उन्हे शर्मिन्दा करते है़।
पर जानते है़ उन्होने मेडिकल को मरणोपरांत अपनी देह दान कर दी परिवार वालो ऩे बड़ा मना किया पर वो नही माने और जानते है ये घटना पूरे जयपुर में आग की तरह फैल गई और वो सनकी अंग्रेजो के जमाने का बुजुर्ग मरने क़े बाद एक हीरो बन गये। घर से हॉस्पिटल तक लोगो का हुजूम फूलो की बौछार और उनके बच्चों क़ो मुबारक बाद आप ऐसे पिता की संतान हो जो दिल और दिमाग से इतनी बेहतरीन सोच रखते थे जो अच्छे अच्छे विद्वान और सामाजिक कार्य कर्ता नहीं रखते । आप बड़े किस्मत वाले है।
उस दिन मेरे बाल मन पर पारिख अंकल एक अनोखी छाप छोड गये। शायद बचपन से देखी घटना ने देह दान के बाद अब अँग दान की प्रक्रिया मुझे सहजता से समझा आ गई।
में आज भी ऐसे जाने कितने लोगो को पर्सनली जानती हूँ जो अंग दान का फॉर्म भर रजिस्ट्रेशन कारवा चुके है ॥ और मरणोपरांत अंग दान कर भी चुके है ।कुछ तो मेरी मित्र है और सहित्यकारा भी है उनका नाम है आदरणीय निर्मला दी कर्नाटक से है और कितने ही अन्य लोगो को समझा कर इस सुख से
लाभान्वित करवा चुकी है।
कुछ दिन पहले में ऐसी महिला से मिली जिसने अपने मृतक बेटे का दिल एक दिल के मरीज क़ो दान किया था ।सँयोग वश कई दिनो बाद महिला की मुलाकात उसी पुरुष से हुईं जिसके शरीर में उसके बेटे का दिल लगा था। उसने अपने बेटे क़े दिल की धड़कन सुनने की इच्छा जाहिर की और धड़कन सुनी . ..धड़कन सुनते हुये वो इतनी भावुक हो गई उसने उस पुरुष में अपना पुत्र ही दिखाई देने लगा और उसने उस व्यक्ति को अपने सीने से लगा लिया .. उस महिला के लिये अपने मरे हुये बेटे क़े दिल की धड़कन सुन पाना क्या सम्भब था कभी नहीं पर ऐसा तभी सम्भब हुआ जब उसने अपने मरे हुये बेटे क़े अंग यानी का दिल दान किया ।
ये तो महज एक उदाहरण है़ हजारों लोग है़ जो इस सुखद एहसास क़े साथ जी रहे है़ फला व्यक्ति मेरी माँ क़ी आँखों से दुनियां देख रहा है़ यानी मेरी माँ की आँखें अभी भी जीवित है ।हम अपने अपनों की मरणोपरांत निशानियां सहेज कर रखते है़ ।
अंग दान कर उन्हे ही सहेज लीजिये ना ममता भरी आँखें दुलार भरें हाथ.. द्रुत गति से चलते पाँव।
मेने और मेरे पति ऩे तो अंग दान का निश्चय कर फॉर्म भर अमरत्व की राह पर बढ़ने का पहला कदम उठा लिया है़ । भय्या मुझे तो सदियों तक इस सुन्दर संसार में रहना है।
किसी कें सीने में धड़कूगी किसी क़ी आँख बन इस अलबेली दुनियां को देखती रहूंगी हाथ बन पुनः कर्म करूँगी और मेरे नाम यथार्थ को सार्थक करूँगी।
सही है़ जिन्दा है़ तो जिन्दा रहने का सबूत दीजिये दूसरो को नही खुद को ..ताकि जब रुखसती का वक़्त आये तो अफसोस ना हो जिन्दगी मिली और हम जी ना सके ॥
“अँग दान महा दान” ड़ा इन्दिरा गुप्ता

यथार्थ राजस्थान

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button