*Editorial Palampur:पालमपुर_मे_टूटी_राजनीति_की_दीवारें* *महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार*
16 नवम्बर 2023- (#पालमपुर_मे_टूटी_राजनीति_की_दीवारें)–
14 नवम्बर को देश के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती के अवसर पर एक ऐतिहासिक समरोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पंडित नेहरू की एक आदमकद प्रतिमा का अनावरण नगर निगम परिसर मे किया गया था। इस कार्यक्रम की एक विशेष बात है की इस कार्यक्रम के आयोजक कांग्रेस के लोग थे, पालमपुर नगर निगम का नेतृत्व भी कांग्रेस के पास है और पालमपुर के विधायक एवं मुख्य संसदीय सचिव आशीष बुटेल भी कांग्रेस पार्टी के है। सर्वविदित है पंडित जवाहर लाल नेहरू भी देश के प्रधान मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता थे। आज भी देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस नेहरू की सोच का अनुकरण करती है, लेकिन इस समारोह के आयोजको ने कांग्रेस के नेता या मंत्री को मुख्य अतिथि के तौर पर न बुलाकर कांग्रेस के धुर विरोधी और प्रदेश के वरिष्ठतम नेता पूर्व मे हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे शांता कुमार जी को आमंत्रित किया और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की प्रतिमा का अनावरण उनके हाथों से करवाया।
मेरे विचार मे यह कोई छोटी घटना नहीं है क्योंकि आज कटुता की राजनीति का बजार गर्म है। राजनीति गाली गलौच तक जा पहुंची है। यहां तक निम्न स्तरीय ब्यानबाजी राजनीति का हिस्सा बन गई है। एक दुसरे के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मुकदमें दर्ज करवाए जा रहे है। राजनैतिक विरोधियों को दुश्मन की तरह देखा जा रहा है। ऐसे माहौल मे यह एक सकारात्मक घटना है। इसके लिए जहां आशीष बुटेल और उनकी टीम बधाई की पात्र है वहीं शांता कुमार जी को भी साधुवाद। खबर है कि जब दो वर्ष पूर्व उन्होने नेहरू जी की प्रतिमा को खराब हालात मे देखा तो उन्होने प्रशासन का ध्यान इस ओर आकर्षित करते हुए कहा कि इसका नवीकरण होना चाहिए। शांता जी ने अपनी ओर से एक लाख रूपए की राशि भी इस कार्य हेतु प्रशासन को उपलब्ध करवाई थी। खैर प्रतिमा का नवीकरण हुआ और उसका अनावरण सभी राजनैतिक दीवारों को तोड़कर शांता जी के हाथो हुआ। इस प्रकार उच्च एवं स्वस्थ राजनैतिक परम्पराओ की स्थापना हुई है। मेरे विचार मे यह घटना अपवाद के तौर पर दर्ज नहीं रहनी चाहिए। अपने राजनैतिक विरोधियो के प्रति ऐसा आदरभाव ही स्वस्थ राजनीति की नींव बनेगा।
Shanta
Shamta kumar ji
शांता जी की पाठशाला में प्यार और सिद्धांतों की राजनीति का पाठ
पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा और इसमें बिलकुल शांता जी ने ऐसी बातों और लहमो का जिक्र किया जो आज की राजनीति के लिए सबक भी है और आदर्श भी , अगर हमारे नेता ऐसे महान राजनीतिक , एक सैद्धांतिक राजनेता जिसने कुर्सी छोड़ दी मगर विधायकों की खरीदोफ्रोख्त का काम नहीं किया , एक पंच से लेकर मुक्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया इस बीच जिस नेता ने कुर्सी बचाने की ओर ध्यान ही नहीं दिया अगर ध्यान दिया तो देश और प्रदेश के हित में क्या कार्य हो सकते हैं वो सोचा , जब ये केंद्र में खाद्य आपूर्ति मंत्री रहे तो जिस प्रकार काम करके दिखाया वो मेरे जिक्र की जरूरत ही नहीं , जैसा कि इन्होंने जिक्र किया है किस प्रकार इस इतने बड़े कृषि विश्वविद्यालय को पालमपुर में स्थापित किया गया और किस प्रकार से विवेकानंद हस्पताल के लिए जमीन ली गई, इन दोनों कार्यों के लिए विपक्ष के विधायकों और स्वर्गीय मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र जी से मिले क्योंकि ये काम जनता के थे और जनता के लिए थे और ये कर के दिखाए भी , आज कल के नेता तो लाइट और नलका लगाने में भी टांग अड़ा देते हैं , स्वर्गीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी की मूर्ति के अनावरण के समय कोई भाजपा और कांग्रेस नहीं लगा बल्कि एक परिवार लगा, शांता जी ने एक बहुत ही अच्छा संकेत दिया कि विपक्ष मजबूत भी होना चाहिए लेकिन जहां तक लोक हित के कार्य हैं उसके लिए दिल खोल कर समर्थन देना चाहिए , किस प्रकार अपने संस्मरण सांझा किए कि मैं कुंज बिहारी लाल बुटेल जी के विरुद्ध चुनाव लड़ रहा था और मेरी पुरानी गाड़ी खराब हो जाती थी तब वो मुझे अपनी गाड़ी में लिफ्ट दे देते थे, यहां मैं जिक्र करना चाहूंगा स्वर्गीय कुंजबिहारी लाल बुटेल जी की बराबरी का नेता पालमपुर को दोबारा नहीं मिल सकता उनकी कमी को बुटेल परिवार पूरा जरूर कर सकता है लेकिन उन जैसा होना बड़ी दूर की बात है, मैने उनके साथ दो तीन चुनाव में काम किया है और मैं उनसे बहुत छोटा भी था लेकिन जो इज्जत वो देते थे वो एक अलग ही एहसास रहा , चुनाव जीतने के बाद भी उनका वोही नजरिया और प्यार रहता था , मैने इसी परिवार के श्री बृजबिहारी लाल बुटेल जी के लिए भी काम किया , आशीष जी से और गोकुल जी से तो कभी मिलना हुआ ही नहीं यहां एक और बात का जिक्र मैं करना चाहूंगा कि मैं नहीं समझता हम कांग्रेस के समर्थक थे हम केवल बुटेलीय थे और मेरे जैसे और भी आज होंगे जो बुटेल परिवार के साथ चलते हैं न कि कांग्रेस के साथ, चलो इस परिवार का आज भी राजनीतिक कद तो ऊंचा है ही बल्कि लोगों के साथ बहुत घुले मिले रहते हैं , हर सुख दुःख में इस परिवार का सहयोग मिलता है , शांता जी ने कुछ बातें सांझा की तो मैं भी एक स्मरण सांझा कर रहा हूं, बात कोई रात ग्यारह बजे की है हम भवारना से आ गए और लाला कुंजबिहारी लाल जी हमारे से बाद आए होंगे सुबह जब हम मिले तो बात लग पड़ी कि आप के आने के बाद हमारी गाड़ी रोकी और चैक की गई , हमने भी प्रोग्राम बना दिया कि इनकी गाड़ी भी हम रोकेंगे करीब रात ग्यारह बजे सलोह और ठंबा और सलोह के बीच गाड़ी रोक दी और तब हमारे होश गुम हो गए जब देखा कि गाड़ी में शांता जी और पंडित माताशरण जी हैं , उनका पूछना स्वाभीक था कि क्या बात है तो हम पसीना पसीना और हमने पांव छुए और कहा कि जी कुछ नहीं कुछ नहीं, सुबह जब बार लगी तो लाला जी ने कहा आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था , आज प्रदेश और देश के नेता शांता जी की तरह सोच रखें तो कैसा अच्छा हो।
Dr lekh Raj Khalet