*एक कमज़ोर व्यक्ति की ‘क्षमा’ के कोई मायने नहीं* *तृप्ता भटिया*
*एक कमज़ोर व्यक्ति की ‘क्षमा’ के कोई मायने नहीं* *तृप्ता भटिया*
खुद से प्रेम करें इस दुनिया में सिर्फ अगर कुछ जरूरी है तो वह है आपका अपना आप! दुनिया से अपने आप को निकाल कर देखो कुछ बचेगा ही नहीं और अपने आप को देखो तो पूरी दुनिया तुम हो!
इंसान जब दुःखी हो, अन्दर से टूटा हुआ हो, तो उन लोगों पर भी प्यार बरसाने लगता है, जिन्हें सामान्य हालात में वह दुत्कारता आया है। जब आप कमज़ोर होते हैं, तो एक तरह की उदारता अपने आप ही जन्म ले लेती है।
आपका अस्ल व्यक्तित्व वह है जब आप सक्षम होते हैं, सामान्य होते हैं। आपकी उदारता संवेदनशीलता का महत्व तभी है, जब आप सक्षम हैं, सामान्य हैं। एक कमज़ोर व्यक्ति की ‘क्षमा’ के कोई मायने नहीं हैं। क्षमा का महत्व भी तभी है, जब प्रतिशोध लेने में समर्थ होने के बावजूद किसी को क्षमा कर दिया जाए। ख़ुशी और ताक़त परोक्ष रूप से असंवेदनशील और शोषक होने को प्रेरित करती हैं।
जहाँ-जहाँ भी सुख है, ताक़त है, वहाँ-वहाँ संवेदनहीन होने की पर्याप्त गुंजाइश है। आपके सुख परोक्ष रूप से किसी के दुःख की माँग करते हैं ; आपकी ताक़त परोक्ष रूप से किसी की कमज़ोरी की माँग करती है।
बहुत कुछ कर सकने की स्थिति में होकर भी, “वैसा बहुत कुछ” न करना ही अस्ल सम्वेदनशीलता है, उदारता है।