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Loneliness: *अच्छा लगता है अकेलापन:- लेखिका तृप्ता भटिया*

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Loneliness: *अच्छा लगता है अकेलापन:- लेखिका तृप्ता भटिया*

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एक समय तक बहुत अच्छा लगता है अकेलापन , खुद को आजाद फील कराता , खुद से बड़ा लगाव रहता है , खुद का दोस्त।
खुद से प्रेम खुद से गुस्सा खुद को मनाना खुद से रूठना , ये सब बहुत अच्छा लगता है और अकेले रहते रहते हम भावनाओ पर काबू रखना सीख जातें हैं , हमे फर्क पड़ता नही कोई क्या सोचता है हमारे लिए बस अपनी दुनिया में रहना ही सबसे अच्छा लगता,
घूमना हंसना खेलना , मस्ती डांस म्यूजिक , गाने , सब खुद के साथ ही का लेते , क्योंकि हमे किसी से कोई उम्मीद नहीं होती , हम खुद के लिए ही काफी होते हैं ,

लेकिन फिर “कोई, आ जाता है हमारी जिंदगी में हमे अहसास दिलाता है की कोई हमारा भी है
हमे बहुत स्पेशल फील कराता है
ख्याल रखना , गलतियों पर डांटना , बिलकुल मां की तरह ख्याल रखना थोड़ी सी भी तबियत खराब होने पर तानों की झड़ी लगा देना एक सेकंड में दवा बताना और उसे जब तक खाए न
डांटते रहना , हर प्रकार हमे बहुत प्रेम से भर देना , बहुत से सपने देखने के लिए प्रेरित करना
करियर में आगे जाने के लिए हर कदम पर गाइड करना , खूब शुभ कामनाएं देना , ईश्वर से हमारे लिए प्रार्थना करना , सब कुछ बदल जाता है , जिंदगी हसीन हो जाती है ,
अकेलेपन से कब हम पूर्ण महसूस करने लगते , पता ही नही चलता, हर दम उन्हें याद करना , उनसे बाते करना , ज्यादा याद आने पर फोटो मांग लेना , फिर फोटो से बतलाना और उनसे कहना कैसे तुमने मेरी दुनिया इतनी खूबसूरत बना दी है ,
गुड मॉर्निंग से गुड नाईट के आखिरी मैसेज तक रोज सैकड़ों मैसेज करना , पल पल की खबर रखना ,

फिर एक दिन धीरे धीरे मैसेज आने कम हो जाते हैं , हमे लगता है शायद व्यस्त होंगे , हम इंतजार करते रहते उनके मेसेज का ,
फिर धीरे धीरे वो हमे नजर अंदाज करने लगते , हम छटपटाने लगते सोचते क्या हुआ ठीक तो होंगे वो
फिर एक मैसेज देखते ही सब शिकवा शिकायत दूर जाना , और खूब खुश हो जाना , लेकिन हम धीरे धीरे उनके लिए खास से आम होने लगते हैं , एक समय के बाद सिर्फ गुड मॉर्निंग ,गुड नाईट की औपचारिकता मात्र रह जाती है , हम सोचने लगते हैं , हम धीरे हंसना भूल जाते हैं , हम फिर अकेलेपन में रहने लगते है, लेकिन ये अकेलापन नही अधूरापन बन जाता है ,हम भीड़ में भी खुद को अकेला पाते हैं
हम हंसना गाना नाचना भूल जाते हैं , बस कमरे के अंधेरे में सिमट के रह जाते हैं और सोचते रहते है
उन यादों के बारे , जैसे एक सपना देखा हो जो आंख खुलते ही टूट गया , कितना मुश्किल होता है ये स्वीकार करना …

धीरे धीरे डिप्रेशन , अवसाद ओवरथिंकिंग हमे अपनी गिरफ्त में ले लेती है ,अचानक से सब कुछ बदल जाता है
फिर भी हम किसी से कोई शिकायत नही करते बस किस्मत मान लेते हैं और एक खामोशी अख्तियार कर लेते,और घुट घुट के मरने लगते हैं अंदर ही अंदर
से कब हम खोखले हो जाते पता ही नही चलता , सारा उत्साह सारी सारी एनर्जी मर जाती है
हम चिड़चिड़े हो जाते ,

खिड़की पे घंटो बैठे रहते और याद करते हैं खुद को ,
छत पे खुले आसमान के नीचे कुछ बूंदे आंसुओ की बहाकर
मन को हल्का कर लेते हैं
काम से फोकस हट जाता ,
सपने मर जाते , गजलों में सुकून ढूंढने की कोशिश करते है …
लेकिन सुकून कहां मिलता फिर बस ,
हम मर चुके होते हैं , बस सांस नही रुकती। ✍️

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