Palampur : *नगर निगम पालमपुर के में बाजार में ही स्ट्रीट लाइटस ,कैमरे व सफाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं* पार्किंग की तो बात छोड़ो*
Palampur : *नगर निगम पालमपुर के में बाजार में ही स्ट्रीट लाइट की पर्याप्त व्यवस्था नहीं*
नगर निगम पालमपुर के मेन बाजार में ही जब अंधेरा छाया हुआ है तो अभी हाल ही में मिले कुछ ग्रामीण क्षेत्र क्या उम्मीद कर सकते हैं? वे किस बात की शिकायत करते हैं कि उनके यहां सफाई स्ट्रीट लाइट सड़कों का बुरा हाल है जबकि में शहर में ही अंधेर नगरी चौपट राजा है ।
जबकि नगर निगम पालमपुर पहले नगर परिषद पालमपुर हुआ करती थी और इस नगर परिषद को विश्व की सबसे छोटी नगर परिषद होने का गौरव प्राप्त था। लगभग आधा किलोमीटर तक सिमटी हुई है नगर परिषद लोगों को सुविधा देने का कार्य करते रही थी ।परंतु जब से इसका विस्तार हुआ है शायद काम के बोझ तले स्टाफ इतना दब चुका है कि वह पुराने नगर परिषद के एरिया को भी सही ढंग से देखने में खुद को असहाय महसूस कर रहे है।
जब शहर के मुख्य बाजार का यह हाल है कि वहां पर लाइट्स पर्याप्त मात्रा में नहीं है कुछ दुकानों के आगे तो इतना अंधेरा है कि चोरों को रात को 12:00 बजने का इंतजार करने की जरूरत नहीं वह कभी भी 8 बजे भीअंधेरे का फायदा उठाकर ताले तोड़कर अपना कार्य कर सकते हैं।
ना तो यहां सीसीटीवी कैमरे हैं ना पर्याप्त लाइटस से और ना ही कोई चौकीदार फिर नगर निगम किस आधार पर खुद को प्रदेश की सबसे अच्छी नगर निगम होने का दावा करती है? एक बहुत पुराने प्रबुद्ध व्यापारी/ दुकानदार अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि स कि यहां पर छुट्टी वाले दिन तो रात को कोई 7:00 बजे भी अंधेरे में ताला तोड़कर चला जाए दुकान साफ करके चल जाए किसी को पता भी नहीं चलेगा, क्योंकि यहां पर अंधेरे का राज है ,ना कोई चौकीदार है ना सीसीटीवी कैमरे। उन्होंने कहा कि शहर में कूड़ा करकट उठाने की भी कोई विशेष व्यवस्था नहीं है।उन्होंने नाराजगी जाहिर की कि कर्तव्य केवल दुकानदारों का है कि वह शहर में होने वाले किसी भी फंक्शन होली दशहरा जन्माष्टमी आदि के लिए चंदा दें, नगर निगम को टैक्स दे, बिजली के बिल भरें परंतु सुविधा कुछ ना मांगे । कुछ अनऑथराइज्ड तथाकथित दुकानदार शहर के रेगुलर दुकानदारों का बिजनेस चौपट करने पर तुले हुए हैं ।इस तरह की तानाशाही तो शायद पहले कभी देखने को नहीं मिली थी ।उन्होंने कहा कि शहर के बाहर सब्जी मंडी की तरफ जाए तो वहां सुबह-सुबह अंधेरा पसरा हुआ होता है जबकि उन्हें सब्जी मंडी पहुंचने में बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ता है।
सड़कों पर झाड़ियां उगी हुई है तथा कहीं पर सड़क गिरी है वहां पर रिटेनिंग वॉल नहीं लग रही हैं नालियां कचरे से भरी पड़ी है कोई सुध लेने वाला नहीं। शहर के मेन बाजार में भी पर्याप्त बिजली का प्रबंध नहीं किया गया है ना ही कोई ट्रैफिक की व्यवस्था सुचारू की जा रही है ।लोग चालान होने के डर से शहर के बाहर की बड़ी दुकानों पर जाना ज्यादा पसंद करते हैं या ऑनलाइन शॉपिंग को दरजीह दे रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अगर किसी ग्राहक ने 500 की शॉपिंग करनी हो और उसका 1000 का चालान कट जाए तो वह किस लिए पालमपुर बाजार में आएगा? क्योंकि यहां पर पार्किंग की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी उन्हें जनप्रतिनिधियों के तरले करने पड़ जाते हैं। शहर की समस्याओं की और जनप्रतिनिधियों का कोई ध्यान नहीं जाता ।शहर के भीतर में मेन मार्केट में शौचालय की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। जबकि करोड़ों रुपया शौचालय पर खर्च किया गया है करोड़ों रुपया स्ट्रीट लाइट पर खर्च किया गया है लेकिन शहर को इन सुविधाओं से बाहर रखा गया है फिर किस बात की नगर निगम जिसका परिणाम यह है कि अभी हाल ही में राजपुर के कुछ बाशिंदों ने DC काँगड़ा से नगर निगम से बाहर होने की गुहार लगाई है कि उन्हें फिर से पंचायत में मिला दिया जाए ।इससे बड़ी गर्व की बात नगर निगम के लिए और क्या हो सकती है ,कि लोग स्वयं कहने लगे हैं कि हमें पंचायत में मिला दिया जाए? नीचे दिए की तरह चित्रों में बाजार के कुछ चित्र हैं और कुछ निगम के पॉश एरिया के चित्र है जहां पर अंधेरा पसरा हुआ है।
अगर दुकान के बाहर लोगों ने अपनी दुकान के फ्लैश बोर्ड या साइन बोर्ड ना लगाए हो तो शायद नजारा कुछ और ही होगा।
सूद साहब ! शहर या शहर से सटे क्षेत्र या इच्छा के विरुद्ध हम गांव वासियों को निगम में डालने के विषय पर आप हम सबकी समस्याओं को समय समय पर उठाते रहते हो और यही आम आदमी के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम है , सरकार की कुछ मंशाएं लोगों के हित में न होकर अपनी कुर्सी बचाने तक ही केंद्रित होती हैं और पालमपुर को नगर परिषद से निगम बनाना भी उसी का एक हिस्सा रहा और जय राम सरकार इसके बाबजूद भी औंधे मुंह गिरी क्योंकि ये फैसला लोगों की इच्छा के विरुद्ध था , सूद साहब! आपका आकलन एक सौ एक प्रतिशत स्टीक है आपकी ये बात काबिले गौर है कि जब निगम अपने नाक तले शहर में ही मूलभूत सुविधाओं को पूरा नहीं कर सकी तो गांव का रास्ता दूर ही नहीं कठिन भी है, नगर पालिका नगर परिषद के छोटे आधे किलोमीटर के सफर में ही हांफती नजर आई तो परिषद से निगम की इतनी बड़ी छलांग में कब कामयाब होगी इसके लिए सब बाते निगम के सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों, मेयर, डिप्टी मेयर और पार्षदों का विचारणीय विषय है , कार्यालय स्टाफ पर काम के बोझ से ज्यादा बोझ फील्ड स्टाफ पर होता है जिसकी कमी शायद निगम में ही नहीं हर विभाग में है , गांव बालों की मागें शहर बालों से हट कर होती हैं लेकिन उन पर निगम की बात तो अलग सरकारें भी ध्यान कम ही देती हैं हमारी अभी तक सीसी टीवी कैमरे की मांग नहीं लेकिन सुचारू परिवहन सुविधा , संकरी गलियों में उचित रोशनी का प्रबंध , जिसका समाधान सोलर लाइट बिलकुल नहीं है क्योंकि हमारे गांवों में पेड़ ही इतने होते हैं कि वहां पर इनकी वजह से सोलर लाइट की बैटरी पूरी तरह चार्ज ही नहीं हो पाती और जो सोलर लाइटें सड़क किनारे लगाई गई हैं उनका कोई ओचित्य ही नहीं है बैटरी की जगह छोटे छोटे बैटरू लगाए गए हैं जिनकी वजह से रात एक डेढ़ बजे के बाद पूरा ब्लैक आउट, इनकी कीमत भी बहुत ज्यादा है और काम जीरो , शहर की बात तो मैं नहीं कर सकता मगर गांव की संकरी गलियों में जिन्हें गौहर कहा जाता है उनमें बिजली से चलने वाली लाइट ही कामयाब हो सकती है , सर ! दुकानदार भाइयों की ये बात बिलकुल सही है कि इनकी दुकानदारी पर ऑनलाइन शॉपिंग और अनाधिकृत दुकानों की वजह से बहुत मंदी आई है और उससे भी बड़ा कारण कहीं पर भी प्रॉपर पार्किंग का न होना है अढ़ाई साल निगम को बने हो गए और एक साल से निगम की अपनी सरकार है तो अब तो पार्किंग का मसला हल होना चाहिए, आपकी ये बात भी सही है कि शोचाल्यों पर करोड़ों रुपए खर्च किए मैं कहूंगा खर्च नहीं व्यर्थ किए इसके पीछे क्या उद्देश्य रहा होगा इसका जवाब तो निगम के अधिकारी या पार्षद ही दे सकते हैं, हम ने भी दो बार पार्किंग के लिए सुझाव दिया है उससे निचले दुकानदारों को अवशेयमेब फायदा होगा ही , पुलिस भी चालान क्यों न करे ये उनकी ड्यूटी का एक हिस्सा है और अगर पुलिस का डर भी न हो तो लोग बाजार में ही गाडियां इस तरह लगा दें कि हरवक्त जाम ही लगा रहे और ग्राहक की बात अलग दुकानदार ही दुकान में फसा रह जाए, सब्जी मंडी वाले रास्ते पर भी लाइट का होना बहुत जरूरी है क्योंकि मंडी का काम बहुत सुबह अंधेरे में ही शुरू हो जाता है , जिस पंचायत ने निगम से बाहर होने की मांग रखी वो अपनी जगह सही हो सकती है लेकिन जैसा कि मैंने लिखा था ये मांग तो अधूरी रही मांग होनी चाहिए थी कि रेलवे द्वारा कई सालों से हमारी बंद की गई सड़क को खुलवाया जाए, गांव चाहे निगम में रहे या फिर से पंचायत में आ जाए सड़क तो लाइफ लाइन है और ऐसा भी नहीं कि सड़क निगम बालों ने बंद की हो
Dr lekh Raj Maranda
बिलकुल सही कहा