NGT: *editorial* *इंसान की जान जाए …पर पेड़ न कट पाए*
NGT: *इंसान की जान जाए पर पेड़ न कट पाए*
यह देखिए पालमपुर फायर ब्रिगेड के रेजिडेंस के ऊपर झुके हुए पेड़ अगर यह गिर गए तो 10 15 लोगों का मरना तय है, यहाँ पर कई परिवार रहते हैं उसमें युवक बूढ़े बुजुर्ग महिलायें बच्चे मर सकते हैं।
लेकिन सरकार है कि मानती नहीं आदमी मर जाए लेकिन पेड़ नहीं कटना चाहिए 😢
यह कौन सी पॉलिसी है? कैसा नियम है कि इंसान तो मर जाए लेकिन पेड़ ना कटे । सड़कों के किनारे कुछ ऐसे खतरनाक पेड़ खड़े होते हैं अगर वह किसी बस में गिर जाए तो वहां पर 10-15 लोगों की जान जा सकती है कुछ लोग इन पेड़ों से इतने परेशान होते हैं कि पेड़ उनके आवास पर झुके होते हैं उनके व्यावसायिक परिसर पर झुके होते हैं परंतु वह उन्हें कटवा नहीं सकते ।फॉरेस्ट डिपार्मेंट कहता है कॉर्पोरेशन की जिम्मेदारी है कॉरपोरेशन कहता है एसडीएम की जिम्मेवारी है और अंततः जिम्मेवारी एनजीटी पर टिक जाती है कि वहां से परमिशन नहीं मिलती ।
हो सकता है इन लोगों के मजबूरियां रही हों कि एनजीटी के कड़े नियमों के चलते यह लोग भी बेबस हो , परंतु सरकार तो किसी के आगे बेबस नहीं होती ,वह चाहे तो कोई कोई भी नियम बना सकती है किसी भी नियम में बदलाव कर सकती है जिससे जनता की जान माल का सुरक्षा हो सके।इन खतरनाक पेड़ों की वजह से जनता की ना तो जान सुरक्षित है और ना माल सुरक्षित है।
यह जरूरी है कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाए परंतु उन पेड़ों का क्या ,,,जो जीवन के लिए खतरा बने हुए हैं?
सरकार को नियम बनाना चाहिए कि अगर ऐसे एक खतरनाक पेड़ को काटा जाए तो उसकी जगह दो पेड़ लगा दिए जाएं या चार पेड़ लगा दिए जाएं परंतु जीवन के लिए खतरा बन चुके इन पेड़ों को काटने में इतनी लेट लेट लतीफी क्यों,या यूं कहिए इतनी बेबसी क्यों है?
हिमाचल के सभी क्षेत्रों में इस तरह के खतरनाक पेड़ है जिससे जनता परेशान है लोगों को अपने घर पर झुके हुए पेड़ों को काटने के लिए सालों साल तक इजाजत नहीं मिलती ।
इसी तरह से पालमपुर के आसपास के बहुत से क्षेत्र में ऐसे पेड़ हैं जो जान माल के लिए खतरा बने हुए हैं जिनमें सुंगल मारण्डा तथा बनुरी बंदला घुग्घर आदि आदि क्षेत्र शामिल है ।खास करके यूनिवर्सिटी के आसपास तो इतनी खतरनाक पेड़ हैं इतने बड़े-बड़े और पुराने पेड़ हैं कि वह कभी भी किसी भी बस पर गिर सकते हैं और 10-20 लोगों की जान ले सकते हैं।
हां यह पेड़ कटेंगे जरूर लेकिन जब कोई हादसा हो जाएगा किसी का घर बर्बाद हो जाएगा किसी क्या जीवन नरक बन जाएगा। अक्सर सुनने में आता है कि एनजीटी की क्लीयरेंस नहीं मिलने के कारण कुछ सड़कें कई वर्षों तक लटकी रहती हैं कुछ प्रोजेक्ट काफी वर्षों तक लम्बित पड़े रहते हैं यदि प्रोजेक्ट के समय पर तैयार हो जाए तो लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है प्रदेश के प्रगति हो सकती है प्रदेश को राजस्व प्राप्त हो सकता है, बेरोजगारी दूर हो सकती है यह सब कुछ हो जाए परंतु पेड़ नहीं करना चाहिए इसके लिए चाहे सरकार को कितना ही नुकसान क्यों न सहना पड़े
कुछ पेड़ों की वजह से कई प्रोजेक्ट सालों साल लटक जाते हैं जिससे सरकार को करोड़ों का घाटा होता है लोगों को समय पर रोजगार नहीं मिल पाता है।
डीएफओ से बात करो एसडीएम से बात करो किसी और जिम्मेवार अधिकारी से बात करो वह कहते हैं हमारे हाथ बंधे हुए हैं हम एक टहनी भी नहीं काट सकते ।ग्रीन ट्रिब्यूनल वाले हाथ में डंडा लिए खड़े रहते हैं यह कैसा ग्रीन ट्रिब्यूनल जिसकी वजह से लोगों की जान जा रही हो वरना संबंधित अधिकारी ऐसे पेड़ों को तुरंत काट सकता है जिसकी उन्हें इजाजत होनी ही चाहिए। ग्रीन ट्रिब्यूनल को भी ऐसे मामलों में स्वत्: ही संज्ञान लेना चाहिए।
Nice artical